मंगलवार, 3 मई 2011

कैसे मिले युद्ध के लिए अर्जुन को शस्त्र?

वैशम्पायनजी ने कहा जन्मेजय अर्जुन हिमालय लांघकर एक बड़े कंटीले जंगल में जा पहुंचे। उसे देखकर अर्जुन के मन में प्रसन्नता हुई। वे उसी जंगल में रहकर आनंद से तपस्या करने लगे। पहले महीने में उन्होंने तीन-तीन दिन पर पेड़ों से गिरे सुखे पत्ते खाए। दूसरे महीने में पंद्रह-पंद्रह दिन में। चौथे महीने में बांह उठाकर पैर के अंगूठे की नोक के बल पर बिना किसी आधार के खड़े हो गए। केवल हवा पीकर तपस्या करने लगे। अर्जुन के तेज से दिशाएं धुमिल होने लगी। भगवान शंकर ने उनसे कहा मैं आज अर्जुन की इच्छा पूरी करूंगा। भगवान शंकर ने भील का रूप ग्रहण किया। भील का रूप धरकर वे अर्जुन के पास आए। बहुत से भूत-प्रेत भी उनके साथ भील के वेष में उनके साथ आए।
भगवान शंकर जब अर्जुन के पास आए तो उन्होंने देखा कि शूकर का वेष धारण कर तपस्वी अर्जुन को मार डालने की घात देख रहा है। अर्जुन ने भी शूकर को देख लिया। उन्होंने उसके ऊपर गांडिव को टंकारते हुए कहा कि तु मुझ निरअपराध को मारना चाहता है। मैं तुझे अभी यमराज के हवाले करता हूं। ज्यो ही उन्होंने बाण छोडऩा चाहा, भील के वेष में आए शिवजी ने उन्हें रोका और कहा कि मैं पहले से ही इसे मारने का निश्चय कर चुका हूं। इसलिए तुम इसे मत मारो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें