मंगलवार, 3 मई 2011

क्या किया अर्जुन ने जब कृष्ण को आ गया गुस्सा?

देश के धृष्टकेतु और केकय देश के सगे संबंधियो को यह समाचार मिला कि पाण्डव बहुत दुखी होकर राजधानी से चले गए और काम्यक वन में निवास कर रहे हैं, तब वे कौरवों पर बहुत चिढ़कर गुस्से के साथ उनकी निंदा करते हुए अपना कर्तव्य निश्चय करने के लिए पाण्डवों के पास गए।
सभी क्षत्रिय भगवान श्रीकृष्ण को अपना नेता बनाकर धर्र्मराज युधिष्ठिर के चारों और बैठ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को नमस्कार कर कहा- राजाओं अब यह निश्चित हो गया कि पृथ्वी अब दुरात्माओं का खुन पीएगी। यह धर्म है कि जो मनुष्य किसी को धोखा देकर सुख भोग कर रहा हो उसे मार डालना चाहिए।
अब हम लोग इकट्ठे होकर कौरवों और उनके सहायकों को युद्ध में मार डालें तथा धर्मराज युधिष्ठिर का राजसिंहासन पर अभिषेक करें। अर्जुन ने देखा कि हम लोगों का तिरस्कार होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए है और अपना कालरूप प्रकट करना चाहते हैं। तब उन्होंने श्रीकृष्ण को शांत करने के लिए उनकी स्तुति की। अर्जुन ने कहा -श्रीकृष्ण आप सारे प्राणियों के दिल में विद्यमान अंर्तयामी आत्मा आप ही है। आप आपने अंहकार रूप भौमासुर को मारकर मणि के दोनों कुंडल इन्द्र को दिए और इन्द्र को इन्द्रत्व भी आपने ही दिया।
आपने जगत के उद्धार के लिए ही मनुष्यों में अवतार लिया। आप ही नारायण और हरि के रूप में प्रकट हुए थे। तब भगवान कृष्ण ने कहा अर्जुन तुम एकमात्र मेरे हो । जो मेरे हैं वे तुम्हारे हैं और जो तुम्हारे हैं वे मेरे। तुम मुझसे अभिन्न हो और हम दोनों एक-दूसरे के स्वरूप हैं।

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