कहते हैं किसी भी माह की पूर्णिमा को दान करने से इसका बहुत ज्यादा फल मिलता है। आखिर पूर्णिमा को ही दान क्यों किया जाए? इसके पीछे क्या कारण और दर्शन है? कौन सी बात है जो पूर्णिमा को इतना खास बनाती है? पूर्णिमा पर नदियों में स्नान के बाद दान का महत्व क्यों है? इस परंपरा के पीछे दार्शनिक कारण भी और वैज्ञानिक भी। पूर्णिमा पर नदियों में स्नान और फिर उसके बाद दान, दोनों अलग-अलग विषय है। स्नान सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा और दान हमारे व्यवहार से।
पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी सबसे ज्यादा होती है। इससे कई ऐसी किरणें निकलती हैं जो नदियों के पानी, वनस्पति और भूमि पर औषधीय प्रभाव डालती हैं। इसलिए पूर्णिमा पर नदियों में स्नान करने से उस औषधीय जल का प्रभाव हम पर भी होता है, जिससे हमें स्वास्थ्यगत फायदा होता है। नदी में स्नान के बाद दान का महत्व इसलिए है कि चंद्रमा मन का अधिपति होता है।
चंद्रमा की किरणों से युक्त जल में स्नान करने से मन को शांति और निर्मलता आती है। दान का महत्व इसीलिए रखा गया है क्योंकि जब हम शांत और निर्मल होते हैं तो ऐसे समय अच्छे कार्य करने चाहिए ताकि हमारे व्यक्तित्व का विकास हो। दान करने से मन पर सद्भाव और प्रेम जैसी भावनाओं का प्रभाव बढ़ता है। इससे हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास होता है।
पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी सबसे ज्यादा होती है। इससे कई ऐसी किरणें निकलती हैं जो नदियों के पानी, वनस्पति और भूमि पर औषधीय प्रभाव डालती हैं। इसलिए पूर्णिमा पर नदियों में स्नान करने से उस औषधीय जल का प्रभाव हम पर भी होता है, जिससे हमें स्वास्थ्यगत फायदा होता है। नदी में स्नान के बाद दान का महत्व इसलिए है कि चंद्रमा मन का अधिपति होता है।
चंद्रमा की किरणों से युक्त जल में स्नान करने से मन को शांति और निर्मलता आती है। दान का महत्व इसीलिए रखा गया है क्योंकि जब हम शांत और निर्मल होते हैं तो ऐसे समय अच्छे कार्य करने चाहिए ताकि हमारे व्यक्तित्व का विकास हो। दान करने से मन पर सद्भाव और प्रेम जैसी भावनाओं का प्रभाव बढ़ता है। इससे हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास होता है।
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