चमनपुर पर घोर संकट आ गया था। शत्रु सेना ने चारों ओर से उसे घेर लिया था। किसी भी समय हमला हो सकता था। इस मुसीबत का सामना करने के लिए सेना तैयार नहीं थी। समय बहुत कम था। राजा तिमनपाल ने सेनापतियों और मंत्रियों की एक बैठक बुलाई। संकट से निपटने के लिए विचार-विमर्श किया जाने लगा।
सभी को असमंजस में पड़ा देखकर वृद्ध और सेवानिवृत सेनापति बोल पड़े, ‘चमनपुर की रक्षा मैं अकेले करुंगा।’
‘आप निश्चित हो जाइए, महाराज’, सेवानिवृत सेनापति महायायन आत्मविश्वास से बोले और उठकर बाहर चले गए।
शत्रु सेना गांवों और नगरों को रौंदती हुई दो दिन बाद चमनपुर के एकदम नज़दीक आ गई। एक दिन शत्रु सेना ने आसपास घूमते हुए वृद्ध महायायन को पकड़ लिया और अपने राजा के सामने पेश किया।
‘यह कौन है?’ राजा ने प्रश्न किया। ‘हुज़ूर, यह हमारे पड़ाव के आसपास घूम रहा था। शायद यह शत्रु का जासूस है’, सेनापति ने जवाब दिया। ‘नहीं’, महायायन गरजकर बोले। ‘मैं जासूस नहीं हूं बल्कि चमनपुर का सैनिक हूं। तुम चमनपुर को उजाड़ नहीं सकते। उसपर हमले का विचार छोड़ दो।’
‘यदि हम विचार न छोड़ें तो?’ शत्रु राजा ने ठहाका मारकर प्रश्न किया।
‘तब तुम्हें मेरी लाश पर से गुज़रना होगा’ वृद्ध ने दृढ़ता से कहा।
तभी शत्रु राजा को एक मज़ाक सूझा। ‘हम चमनपुर पर हमले का विचार त्याग सकते हैं, लेकिन हमारी एक शर्त है।’
‘तुम्हें नदी में डुबकी लगानी होगी। जितनी देर तुम्हारा सिर पानी में डूबा रहेगा, मैं आक्रमण नहीं करूंगा। लेकिन जैसे ही तुम्हारा सिर पानी से बाहर आया तो मेरी सेना कूच कर देगी।’ शत्रु राजा ने ठहाका मारकर कहा। वृद्ध महायायन गम्भीर थे। कुछ देर विचार कर वह बोले, ‘मुझे शर्त मंज़ूर है।’
भद्रावती नदी के तट पर भारी भीड़ थी। एक और शत्रु सेना कूच की तैयारी के साथ खड़ी थी, दूसरी और चमनपुर की जनता। महायायन नदी में कूद पड़े।
समय बीतता गया। एक घंटा हो गया पर महायायन का सिर पानी से ऊपर न आया। शत्रु राजा को संदेह हुआ कि बूढ़ा पानी के अंदर तैर कर भाग तो नहीं गया। उसने गोताखोर पानी में उतारे।
कुछ देर में वे एक लाश को निकाल लाए। वह लाश महायायन की ही थी। ‘महाराज’ गोताखोरों ने कहा, ‘इसने नदी के तल में एक चट्टान को हाथों से जकड़ रखा था। बड़ी मुश्किल से हम इसे चट्टान से अलग कर पाए।’
गोताखोरों का जवाब सुनकर शत्रु राजा सन्न रह गया। उस का दिल पिघल गया और वह हमला किए बगैर ही वापस लौट गया। दूसरे तट से महायायन की जय-जयकार गूंजने लगी।
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सभी को असमंजस में पड़ा देखकर वृद्ध और सेवानिवृत सेनापति बोल पड़े, ‘चमनपुर की रक्षा मैं अकेले करुंगा।’
‘आप निश्चित हो जाइए, महाराज’, सेवानिवृत सेनापति महायायन आत्मविश्वास से बोले और उठकर बाहर चले गए।
शत्रु सेना गांवों और नगरों को रौंदती हुई दो दिन बाद चमनपुर के एकदम नज़दीक आ गई। एक दिन शत्रु सेना ने आसपास घूमते हुए वृद्ध महायायन को पकड़ लिया और अपने राजा के सामने पेश किया।
‘यह कौन है?’ राजा ने प्रश्न किया। ‘हुज़ूर, यह हमारे पड़ाव के आसपास घूम रहा था। शायद यह शत्रु का जासूस है’, सेनापति ने जवाब दिया। ‘नहीं’, महायायन गरजकर बोले। ‘मैं जासूस नहीं हूं बल्कि चमनपुर का सैनिक हूं। तुम चमनपुर को उजाड़ नहीं सकते। उसपर हमले का विचार छोड़ दो।’
‘यदि हम विचार न छोड़ें तो?’ शत्रु राजा ने ठहाका मारकर प्रश्न किया।
‘तब तुम्हें मेरी लाश पर से गुज़रना होगा’ वृद्ध ने दृढ़ता से कहा।
तभी शत्रु राजा को एक मज़ाक सूझा। ‘हम चमनपुर पर हमले का विचार त्याग सकते हैं, लेकिन हमारी एक शर्त है।’
‘तुम्हें नदी में डुबकी लगानी होगी। जितनी देर तुम्हारा सिर पानी में डूबा रहेगा, मैं आक्रमण नहीं करूंगा। लेकिन जैसे ही तुम्हारा सिर पानी से बाहर आया तो मेरी सेना कूच कर देगी।’ शत्रु राजा ने ठहाका मारकर कहा। वृद्ध महायायन गम्भीर थे। कुछ देर विचार कर वह बोले, ‘मुझे शर्त मंज़ूर है।’
भद्रावती नदी के तट पर भारी भीड़ थी। एक और शत्रु सेना कूच की तैयारी के साथ खड़ी थी, दूसरी और चमनपुर की जनता। महायायन नदी में कूद पड़े।
समय बीतता गया। एक घंटा हो गया पर महायायन का सिर पानी से ऊपर न आया। शत्रु राजा को संदेह हुआ कि बूढ़ा पानी के अंदर तैर कर भाग तो नहीं गया। उसने गोताखोर पानी में उतारे।
कुछ देर में वे एक लाश को निकाल लाए। वह लाश महायायन की ही थी। ‘महाराज’ गोताखोरों ने कहा, ‘इसने नदी के तल में एक चट्टान को हाथों से जकड़ रखा था। बड़ी मुश्किल से हम इसे चट्टान से अलग कर पाए।’
गोताखोरों का जवाब सुनकर शत्रु राजा सन्न रह गया। उस का दिल पिघल गया और वह हमला किए बगैर ही वापस लौट गया। दूसरे तट से महायायन की जय-जयकार गूंजने लगी।
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