शनिवार, 14 मई 2011

भागवत २५४

जब हो नाजुक घड़ी तो...
जब महारथी साम्ब ने देखा कि धृतराष्ट्र के पुत्र मेरा पीछा कर रहे हैं तब वे एक सुंदर धनुष चढ़ाकर सिंह के समान अकेले ही रणभूमि में डट गए। इधर कर्ण को मुखिया बनाकर कौरव वीर धनुष चढ़ाए हुए साम्ब के पास आ पहुंचे।कौरवों ने युद्ध में बड़ी कठिनाई और कष्ट से साम्ब को रथहीन करके बांध लिया। इसके बाद वे उन्हें तथा अपनी कन्या लक्ष्मणा को लेकर जय मनाते हुएहस्तिनापुर लौट आए। द्वारिकावासियों को इसकी सूचना नहीं थी, नहीं भगवान को। नारद ने आकर यह संदेश सुनाया। द्वारिका में कोहराम मच गया।
द्वारिकाधीश के पुत्र को कौरवों ने बंदी बना लिया।नारदजी से यह समाचार सुनकर यदुवंशियों को बड़ा क्रोध आया। वे महाराज उग्रसेन की आज्ञा से कौरवों पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगे। बलरामजी कलहप्रधान कलियुग के सारे पाप-ताप को मिटाने वाले हैं। उन्होंने कुरुवंशियों और यदुवंशियों के लड़ाई-झगड़े को ठीक न समझा। यद्यपि यदुवंशी अपनी तैयारी पूरी कर चुके थे, फिर भी उन्होंने उन्हें शांत कर दिया और स्वयं सूर्य के समान तेजस्वी रथ पर सवार होकर हस्तिनापुर गए।
उनके साथ कुछ ब्राम्हण और यदुवंश के बड़े-बूढ़े भी गए। जब नाजुक घड़ी हो तो बड़े-बूढ़े साथ में होना चाहिए।बलरामजी ने हमें सुंदर संकेत दिया है। जब विवाह जैसी स्थिति हो, सुलह करना हो, शांति की स्थापना करनी हो तो बुजुर्गों को आगे करना चाहिए। उनका अनुभव इसमें कारगर साबित होता है।
बलरामजी ने कौरवों की दुष्टता-अशिष्टता देखी और उनके दुर्वचन भी सुने।
उस समय उनकी ओर देखा तक नहीं जाता था। वे बार-बार जोर-जोर से हंस कर कहने लगे-सच है, जिन दुष्टों को अपनी कुलीनता बलपौरुष और धन का घमंड हो जाता है वे शांति नहीं चाहते। मैं आपको समझा-बुझाकर शांत करने के लिए, सुलह करने के लिए यहां आया हूं। फिर भी ये ऐसी दुष्टता कर रहे हैं, बार-बार मेरा तिरस्कार कर रहे हैं।,
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