गुरुवार, 5 मई 2011

बेटियों के घर खाली हाथ क्यों नहीं जाना चाहिए?

बेटियां तो बाबुल की रानियां है। मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी ये कहानियां है। सबके दिल की सारे घर की ये रानियां है ये चिडिय़ा एक दिन फुर्र से उड़ जानीयां है... जिस तरह इस फिल्मी गीत की ये पंक्तियां दिल को छू जाती है। ठीक उसी तरह बेटियों के चहकने से घर का हर त्यौहार खुशियों से भर जाता है लेकिन बेटियों को एक दिन अपने ससुराल जाना ही पड़ता है क्योंकि यही परंपरा है।।बेटियां एक ही कुल को नहीं बल्कि दो कुलों को रोशन करती हैं। आपने बढ़े-बुजूर्गों को अक्सर कहते सुना होगा कि बेटियों के ससुराल में माता-पिता या अन्य मायके वालों को कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

दरअसल हर परंपरा के पीछे हमारे पूर्वजों की कोई गहरी सोच जरूर रही है। बेटियों की शादी में कई रस्में होती है। जिनके बिना शादी होती ही नहीं है। उन्हीं रस्मों में से एक है कन्यादान। कन्यादान शादी का मुख्य अंग माना गया है। शास्त्रों के अनुसार दान करना पुण्य कर्म है और इससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। दान के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में कई नियम बनाए गए हैं ताकि दान करने वाले को अधिक से अधिक धर्म लाभ प्राप्त हो सके।
इसी से जुड़ी एक परंपरा और भी है वह यह कि बेटियों के घर खाली हाथ नहीं जाना चाहिए यानी बिना किसी तरह की भेंट लिए बेटी के घर जाना शास्त्रों के अनुसार भी उचित नहीं माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है बेटी, वैद्य और ज्योतिष के घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इन्हें दान करने पर बहुत अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है और क न्यादान के पुण्य फल में वृृद्धि होती है। साथ ही यह ज्योतिषीय मान्यता या उपाय भी है कि घर की दरिद्रता मिटाने के लिए बेटियों को दान देना चाहिए कहते हैं इससे मायके में सुख व सम्पन्नता बढ़ती है। इसीलिए कहा जाता है कि बेटियों के घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

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