उसके बाद अर्जुन जल्दी से चित्रसेन के पास गए और उर्वशी ने जो कुछ कहा था, वह सब कह सुनाया। चित्रसेन ने सारी बातें इन्द्र से कहीं। इन्द्र ने अर्जुन को एकान्त में बुलाकर बहुत कुछ समझाया और हंसते हुए कहा अर्जुन तुम्हारे जैसा पुत्र पाकर कुंती सचमुच पुत्रवती हुई। तुमने अपने धैर्य से ऋषियों को भी जीत लिया है। उर्वशी ने तुम्हे शाप दिया है उससे तुम्हारा बहुत काम बनेगा। जिस समय तुम तेहरवे वर्ष का गुप्तवास करोगे उस समय तुम एक वर्ष तक नपुसंक के रूप में एक महीने तक छूपकर रहोगे। फिर तुम्हे पुरुषत्व की प्राप्ति हो जाएगी। उनकी चिंता मिट गयी। वे गंधर्वराज चित्रसेन के साथ रहकर स्वर्ग के सुख लूटने लगे।
अर्जुन इन्द्र के आधे आसन पर बैठ गए। लोमेश मुनि मन ही मन सोचने लगे कि अर्जुन को यह आसन कैसे मिल गया। इसने कौन सा ऐसा पुण्य किया है। किन देशों को जीता है। जिससे इसे इंद्रासन प्राप्त हो। इन्द्र ने लोमेश मुनि के मन जान ली। उन्होंने कहा मुनि श्री आपके मन में जो यह विचार उत्पन्न हुआ है उसका उत्तर मैं आपको देता हूं। अर्जुन केवल मनुष्य नहीं है। यह मनुष्यरूपधारी देवता है। मनुष्यों में तो इसका अवतार हुआ है। यह सनातन ऋषि नर है। इसने इस समय पृथ्वी पर अवतार लिया है। वे वरदान पाकर अपने आपको भूल गए हैं।
अर्जुन इन्द्र के आधे आसन पर बैठ गए। लोमेश मुनि मन ही मन सोचने लगे कि अर्जुन को यह आसन कैसे मिल गया। इसने कौन सा ऐसा पुण्य किया है। किन देशों को जीता है। जिससे इसे इंद्रासन प्राप्त हो। इन्द्र ने लोमेश मुनि के मन जान ली। उन्होंने कहा मुनि श्री आपके मन में जो यह विचार उत्पन्न हुआ है उसका उत्तर मैं आपको देता हूं। अर्जुन केवल मनुष्य नहीं है। यह मनुष्यरूपधारी देवता है। मनुष्यों में तो इसका अवतार हुआ है। यह सनातन ऋषि नर है। इसने इस समय पृथ्वी पर अवतार लिया है। वे वरदान पाकर अपने आपको भूल गए हैं।
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