मंगलवार, 10 मई 2011

भागवत २५१

...उन लोगों को देखकर भगवान भी हंसता है
जब भगवान बलरामजी नन्दबाबा के व्रज में गए हुए थे, तब पीछे से करूश देश के राजा पौण्ड्रक ने भगवान् श्रीकृष्ण के पास एक दूत भेजकर यह कहलाया कि भगवान वासुदेव मैं हूं। मूर्ख लोग उसे बहकाया करते थे कि आप ही भगवान वासुदेव हैं और जगत् की रक्षा के लिए पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए हैं। इसका फल यह हुआ कि वह मूर्ख अपने को ही भगवान मान बैठा।उसका यह सारा का सारा वेष बनावटी था, मानो कोई अभिनेता रंगमंच पर अभिनय करने के लिए आया हो।
उसकी वेष-भूषा अपने समान देखकर भगवान् श्रीकृष्ण खिलखिलाकर हंसने लगे।यह प्रसंग हमें बताता है कि जब हम अहंकार में डूबते हैं तो ऊपर बैठा भगवान भी हमें देखकर हंसता है। इसलिए हमेशा अहंकार का त्याग ही करें।अहंकार आपको न केवल हंसी का पात्र बना देगा बल्कि आपको परमात्मा से, अपनों से, सबसे दूर कर देगा। इसलिए अहंकार को हमेशा दूर रखें। ध्यान रहे कि भगवान हमें देख रहा है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने तीखे बाणों से उसके रथ को तोडफ़ोड़ डाला और चक्र से उसका सिर उतार लिया। फिर भगवान् ने अपने बाणों से काशी नरेश का सिर भी धड़ से ऊपर उड़ाकर काशीपुरी में गिरा दिया। इसी प्रसंग में अहंकार की एक और कथा है। काशी नरेश का पुत्र भी वही भूल कर बैठा जो उसके पिता ने की। परमात्मा को मारना चाहा। इस कथा के सार को समझना बहुत आवश्यक है, यह हम सभी के जीवन से जुड़ी है।
www.bhaskar.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें