बुधवार, 4 मई 2011

धर्म में ये चार बातें हैं सबसे ज्यादा काम की

धर्म के मामले में चार बातें काम की हैं- सेवा, सत्य, परहित और अहिंसा। हमारे यहां एक प्यारा शब्द है धर्मभीरू, यानी धर्म से डरने वाला। धर्म सृष्टि को धारण करने वाला शाश्वत नियम है। केवल पूजा-पाठ को पूरी तरह से धर्म नहीं माना जा सकता। वह तो उपासना है।
मनु ने धर्म के 10 लक्षण बताए हैं- धैर्य, क्षमा, दम, दस्तेय, शौच, इंन्द्रिय निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध। इन नियमों की आवश्यकता तो हर वर्ग, हर जाति को पड़ेगी चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, ईसाई हो कि जैन हो। सीधी सी बात यह है कि मनुष्य को इन नियमों का पालन करना चाहिए। इन नियमों से डरना चाहिए, न कि धर्म से डरना चाहिए।
धर्मभीरू होने का अर्थ तो यही लगा लेते हैं कि धर्म से डरो, जबकि डरना धर्म के नियमों से चाहिए। ट्रेफिक पुलिस से नहीं, ट्रेफिक नियमों से डरना चाहिए। हम अपने कर्तव्य से एक अच्छी व्यवस्था को जन्म दें। यहीं से शुरू होता है सेवाधर्म। परमात्मा ने हर काम के लिए किसी न किसी को चुन रखा है, वैसे ही हम भी चुने गए हैं। चयन सृष्टि का आधारभूत नियम है। जाने-अनजाने हर कोई चुन रहा है।
प्रकृति भी चुपचाप चुनाव कर रही है। पेड़ को देखिए, फल गिरते हैं, उन फलों में कई बीज भी होते हैं, पर इन बीजों में से कोई एक वृक्ष बन पाता है। जड़ और चेतन सबमें चयन की प्रक्रिया चल रही है। राम ने अपने काम के लिए हनुमान को चुना, परमहंस ने नरेन्द्र को चुना, कहीं मालिक ने मोहम्मद को चुना, कहीं जीसस, कहीं बुद्ध, कहीं महावीर चुने गए हैं। ऐसे ही हम भी चयन किए गए हैं और यहीं से शुरू होता है हमारा सेवाधर्म। इसकी सबसे अच्छी शुरूआत हो सकती है जरा मुस्कराइए...।

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