रविवार, 15 मई 2011

जब सीताजी ने रामजी को देखा तो....

जिन्होंने अपने रूप से नगर के स्त्री पुरूषों को अपने वश में कर लिया है। उन्हें देखना चाहिए वे देखने ही योग्य है। नारदजी ने भी रामजी के स्वरूप की सीताजी से बहुत प्रशंसा की। हाथों के कड़े करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर रामजी दिल में विचारकर लक्ष्मण से कहते हैं मानों कामदेव ने दुनिया जीतने का संकल्प कर लिया। ऐसा कहकर श्रीरामजी ने मुड़कर उस ओर देखा तो सीताजी जैसे ही उन्हें दिखाई दी तो वे पलकें झपकाना भुल गए। सीताजी की सुन्दरता देखकर दिल में वे उनकी सराहना करते है लेकिन मुंह से शब्द नहीं निकल रहे हैं।
रघुवंशियों का यह सहज स्वभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर पैर नहीं रखता। रामजी के छोटे भाई से बातें कर रहे हैं और उनसे कह रहे हैं कि सीताजी उनके मन को भा गई हैं। सीताजी पत्तियों और लताओं की ओंट में से श्रीरामजी को देख रही हैं। सीताजी की सारी सहेलियां मोहित होकर रामजी को देख रही है। एक चतुर सहेली ने सीताजी को कहा गिरिजाजी का ध्यान फिर कर लेना, इस समय राजकुमार को क्यों नहीं देख लेती। तब सीताजी ने सकुचाकर अपनी खोले और रामजी की तरफ देखा तो वे क्षुब्ध रह गई।

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