भाग्य किस्मत और विधि का विधान कहते हुए लोगों को अक्सर सुना जाता है। अगर किसी को उसकी मनचाही मंजिल नहीं मिल पाती है तो वह अक्सर इसे दुर्भाग्य कहकर अपने मन को समझा लेता है। लेकिन ऐसी धारणा को पूरी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता। तो फिर क्या कारण है कि किसी को लाख चाहने पर भी उसकी मंजिल या लक्ष्य नहीं मिल पाता? इस शाश्वत और गंभीर प्रश्र का माकूल जवाब जानने के लिये आइये चलते हैं एक छोटे से प्रसंग की ओर....
हुआ यह कि एक बार किसी पहुंचे हुए सद्गुरु के पास एक भक्त आया और आकर सीधे रोने लगा। सद्गुरु ने उसे समझाकर चुप करवाया और रोने का कारण पूछा। भक्त ने बताया कि मैं जो भी करना चाहता हूं उसमें मुझे कभी भी सफलता प्राप्त नहीं होती। यहां तक कि अब मैं इस संसार से पूरी तरह से उदास हो चुका हूं। अब तो मैं सिर्फ ईश्वर को ही पाना चाहता हूं, लेकिन लगता है भगवान को भी मेरे ऊपर दया नहीं आती। उसने सच्चे संत से पूछा कि मुझे ईश्वर मिलेगा या नहीं? और अगर मिलेगा तो आखिर कब मिलेगा?
संत ने कहा चलो इस बात का जवाब में तुम्हें नदी पर चल कर दूंगा। नदी पर पहुंच कर संत ने उस भक्त से कहा आओ पहले साथ में नहा लेते हैं। जैसे ही उस भक्त ने नहाने के लिये नदी में डुबकी लगाई, संत ने तुरंत ही उसकी गर्दन पकड़कर उसे पानी में ही दबा दिया। उस व्यक्ति ने पानी से बाहर निकलने की भरपूर कोशिश की लेकिन संत ने पूरी ताकत लगाकर कुछ देर के लिये उस व्यक्ति को पानी में ही डुबाए रखा और फिर छोड़ दिया।
जैसे ही संत ने छोड़ा तुरंत वह व्यक्ति बाहर निकला और बुरी तरह से घबराया हुआ सा हांफने लगा। गुस्से से भरकर उसने संत से पूछा कि यह क्या मजाक है, मैं आया तो तुमसे भगवान का पता पूछने और तुम तो मेरी ही जान लेने के पीछे पड़ गए। संत ने मुस्कुराकर बड़े ही शांत लहजे में उत्तर दिया कि- जिस तरह से पानी में से निकलने के लिये तुछ छटपटा रहे थे, ठीक उसी प्रकार व्याकुल होकर जिस दिन परमात्मा के लिये तड़पने लगोगे बस उसी समय एक पल में ही तुम्हें ईश्वर प्राप्त हो जाएगा। तुम आज तक जिस भी काम में असफल हुए उसका यही कारण था कि तुम्हारी चाह अधूरी थी, उसमें वैसी तड़प, बैचेनी और ललक नहीं थी जैसी कि होना चाहिये।
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हुआ यह कि एक बार किसी पहुंचे हुए सद्गुरु के पास एक भक्त आया और आकर सीधे रोने लगा। सद्गुरु ने उसे समझाकर चुप करवाया और रोने का कारण पूछा। भक्त ने बताया कि मैं जो भी करना चाहता हूं उसमें मुझे कभी भी सफलता प्राप्त नहीं होती। यहां तक कि अब मैं इस संसार से पूरी तरह से उदास हो चुका हूं। अब तो मैं सिर्फ ईश्वर को ही पाना चाहता हूं, लेकिन लगता है भगवान को भी मेरे ऊपर दया नहीं आती। उसने सच्चे संत से पूछा कि मुझे ईश्वर मिलेगा या नहीं? और अगर मिलेगा तो आखिर कब मिलेगा?
संत ने कहा चलो इस बात का जवाब में तुम्हें नदी पर चल कर दूंगा। नदी पर पहुंच कर संत ने उस भक्त से कहा आओ पहले साथ में नहा लेते हैं। जैसे ही उस भक्त ने नहाने के लिये नदी में डुबकी लगाई, संत ने तुरंत ही उसकी गर्दन पकड़कर उसे पानी में ही दबा दिया। उस व्यक्ति ने पानी से बाहर निकलने की भरपूर कोशिश की लेकिन संत ने पूरी ताकत लगाकर कुछ देर के लिये उस व्यक्ति को पानी में ही डुबाए रखा और फिर छोड़ दिया।
जैसे ही संत ने छोड़ा तुरंत वह व्यक्ति बाहर निकला और बुरी तरह से घबराया हुआ सा हांफने लगा। गुस्से से भरकर उसने संत से पूछा कि यह क्या मजाक है, मैं आया तो तुमसे भगवान का पता पूछने और तुम तो मेरी ही जान लेने के पीछे पड़ गए। संत ने मुस्कुराकर बड़े ही शांत लहजे में उत्तर दिया कि- जिस तरह से पानी में से निकलने के लिये तुछ छटपटा रहे थे, ठीक उसी प्रकार व्याकुल होकर जिस दिन परमात्मा के लिये तड़पने लगोगे बस उसी समय एक पल में ही तुम्हें ईश्वर प्राप्त हो जाएगा। तुम आज तक जिस भी काम में असफल हुए उसका यही कारण था कि तुम्हारी चाह अधूरी थी, उसमें वैसी तड़प, बैचेनी और ललक नहीं थी जैसी कि होना चाहिये।
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