स्वयंवर की घड़ी आई। राजा भीमक ने सभी को बुलवाया। शुभ मुहूर्त में स्वयंवर रखा। सब राजा अपने-अपने निवास स्थान से आकर स्वयंवर में यथास्थान बैठ गए। तभी दमयन्ती वहां आई। सभी राजाओं का परिचय दिया जाने लगा। दमयन्ती एक-एक को देखकर आगे बढऩे लगी। आगे एक ही स्थान पर नल के समान ही वेषभुषा वाले पांच राजकुमार खड़े दिखाई दिए। यह देखकर दमयन्ती को संदेह हो गया, वह जिसकी और देखती उन्हें सिर्फ राजा नल ही दिखाई देते। इसलिए विचार करने लगी कि मैं देवताओं को कैसे पहचानूं और ये राजा है यह कैसे जानूं? उसे बड़ा दुख हुआ। अन्त में दमयन्ती ने यही निश्चय किया कि देवताओं की शरण में जाना ही उचित है। हाथ जोड़कर प्रणामपूर्वक स्तुति करने लगी। देवताओं हंसों के मुंह से नल का वर्णन सुनकर मैंने उन्हें पतिरूपण से वरण कर लिया है।
मैंने नल की आराधना के लिए ही यह व्रत शुरू कर लिया है। आप लोग अपना रूप प्रकट कर दें, जिससे में राजा नल को पहचान लूं। देवताओं ने दमयन्ती की बात सुनकर उसके दृढ़-निश्चय को देखकर उन्होंने उसे ऐसी शक्ति दी जिससे वह देवता और मनुष्य में अंतर कर सके। दमयन्ती ने देखा कि शरीर पर पसीना नहीं है। पलके गिरती नहीं हैं। माला कुम्हलाई नहीं है। शरीर स्थिर है। शरीर पर धूल व पसीना भी नहीं है। दमयन्ती ने इन लक्षणों को देखकर ही राजा नल को पहचान लिया।
मैंने नल की आराधना के लिए ही यह व्रत शुरू कर लिया है। आप लोग अपना रूप प्रकट कर दें, जिससे में राजा नल को पहचान लूं। देवताओं ने दमयन्ती की बात सुनकर उसके दृढ़-निश्चय को देखकर उन्होंने उसे ऐसी शक्ति दी जिससे वह देवता और मनुष्य में अंतर कर सके। दमयन्ती ने देखा कि शरीर पर पसीना नहीं है। पलके गिरती नहीं हैं। माला कुम्हलाई नहीं है। शरीर स्थिर है। शरीर पर धूल व पसीना भी नहीं है। दमयन्ती ने इन लक्षणों को देखकर ही राजा नल को पहचान लिया।
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