बुधवार, 4 मई 2011

विश्वामित्र ने दशरथ से क्या मांगा?

विश्वामित्रजी के मन में चिंता छाई हुई थी उन्होंने अयोध्या जाने का फैसला किया। सरयु के जल में स्नान करके वे राजा के दरवाजे पर पहुंचे। राजा ने जब मुनि के आने का समाचार सुना, तब वे ब्राह्मणों के समाज को साथ लेकर मिलने गए और दण्डवत करके मुनि सम्मान करते हुए, उन्हें लाकर अपने आसन पर बैठाया। चरणों को धोकर बहुत पूजा की ओर कहा मेरे समान धन्य आज दूसरा कोई नहीं है। राजा ने उन्हें प्रेम से भोजन करवाया फिर राजा ने चारों पुत्रों को मुनि से मिलने के लिए बुलाया।
चारों पुत्रों ने मुनि को प्रणाम किया। विश्वामित्र रामजी की शोभा देखने में ऐसा मग्र हो गए मानो चकोर ने चांद को देखा। तब राजा खुश होकर बोले किस कारण से आपका शुभागमन यहां हुआ है। मैं उसे पूरा करने में देर नहीं लगाऊंगा। तब विश्वामित्र ने कहा राजन राक्षसों के समुह मुझे बहुत सताते हैं। इसलिए मैं तुमसे कुछ मांग ने आया हूं। छोटे भाई सहित श्री रघुनाथजी को मुझे दो। राक्षसों के मारे जाने पर मैं सुरक्षित हो जाऊंगा।
इस अत्यंत अप्रिय वाणी को सुनकर राजा का दिल कांप उठा और उनके मुख की कांति फिकी पड़ गई। उन्होंने कहा मुनि आप मुझ से खजाना मांग लीजिए, मैं बड़ी खुशी से अपना सबकुछ आपको सौंप दूंगा। मेरे पुत्र अभी किशोर अवस्था में है वे कहां उन क्रुर व डरावने राक्षसों निपट पाएंगे। तब विश्वामित्र ने दशरथ को बहुत प्रकार से समझाया और बताया कि उन राक्षसों का नाश केवल राम के हाथों ही संभव है।

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