गुरुवार, 5 मई 2011

क्यों दिया उर्वशी ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप?

देवसभा में मैंने तुम्हे देखा था तो मेरे मन में कोई बुरा भाव नहीं था। मैं यही सोच रहा था कि पुरुवंश की यही आनन्दमयी माता है तुम्हे पहचानते ही ही मेरी आंखे से खिल उठी। इसी से मैं तुम को देख रहा था। मेरे संबंध में आपको कोई और बात नहीं सोचना चाहिए। उर्वशी ने कहा अर्जुन अप्सराओं का किसी के साथ विवाह नहीं होता।
हम स्वतंत्र हैं इसलिए मुझे गुरुजन की पदवी पर बैठाना उचित नहीं है। आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइए। मैं काम वेग में जल रही हूं।आप मेरा दुख मिटाइए। अर्जुन ने कहा मैं तुमसे सच कह रहा हूं। दिशा और विदिशाएं अपने अधिदेवताओं के साथ मेरी सुन ले। जैसे कुन्ती, माद्री, और इन्द्रपत्नी शचि मेरी माताएं है। वैसे ही तुम पुरुवंश की जननी होने के कारण मेरी पुज्यनीय माता हो।
मैं तुम्हारे चरणों में झुककर प्रणाम करता हूं। अर्जुन की बात सुनकर उर्वशी क्रोध के मारे कांपने लगी। उसने अर्जुन को शाप दिया- उर्वशी ने कहा मैं तुम्हारे पिता इन्द्र की आज्ञा से ही तुम्हारे पास आई थी फिर भी तुम मेरी इच्छा पूरी नहीं कर रहे हो। इसलिए जाओ तुम्हे स्त्रियों के नर्तक होकर रहना पड़ेगा और सम्मानरहित होकर तुम नपुसंक नाम से प्रसिद्ध होओगे। इतना कहकर वह अपने निवास स्थान लौट चली।

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