मंगलवार, 17 मई 2011

लोककथाः चिड़ा-चिड़िया की कहानी

देवेश सिंगी
एक चिड़िया के जोड़े को अंडे देने के लिए घोंसला बनाना था। उन्होंने एक बूढ़े साधू से पूछकर उसकी लम्बी दाढ़ी में अपना घोंसला बनाया और उसमें दो अंडे दिए। एक शाम को चिड़िया अंडे सेने लगी थी और चिड़ा चिड़िया के लिए खाने की तलाश में गया। एक बड़ा-सा सुंदर कमल का फूल देखकर वह उसपर बैठकर उसका मीठा रस चूसने लगा। तभी आकाश काला होने लगा, रात घिरी और कमल बंद हो गया। चिड़ा भी उसमें बंद हो गया। वह जब घोंसले पर वापस नहीं आया, तो चिड़िया समझी कि वह उसे छोड़कर कहीं ओर चला गया है।

दूसरे दिन सुबह जब कमल फिर से खिला तो चिड़ा हांफता-कांपता हुआ वापस घोंसले में पहुंचा। चिड़िया बहुत नाराज़ थी। चिड़े ने लाख समझाया कि वह किस तरह कमल के अंदर बंद हो गया था। परंतु चिड़िया मानने को तैयार नहीं थी। चिड़ा चतुर था बोला, ‘मैं सौगंध खाकर कहता हूं कि यदि मैं झूठ बोल रहा हूं तो अभी इसी समय इस बूढ़े साधू का सिर कटकर धरती पर गिर जाए।’ साधू ने सुना तो वह गुस्सा हो गया। उसने उन्हें अपनी दाढ़ी में घोंसला बनाने की जगह दी और वह उसी के मरने की बात कह रहा है। उसने उसी समय घोंसला अपनी दाढ़ी में से निकाला और दूर एक घाटी में फेंक दिया। घोंसला घनी लम्बी घास पर जा गिरा। चिड़ा चिड़ी दोनों घबराए। लड़ना भूलकर वे उड़कर अंडों के पास गए। अंडे सुरक्षित देखकर उनकी जान में जान आई।
कुछ समय बाद अंडे फूटे और उसमें से प्यारे से बच्चे निकलकर चीं-चीं करने लगे। वे दोनों खुश थे परंतु एक दिन कुछ लोग घाटी में आए और सफाई करने के लिए घास में आग लगा दी। बच्चे बहुत छोटे-छोटे थे। उनके तो पंख भी नहीं निकले थे। दोनों क्या करें? आग लगातार पास आ रही थी। चिड़िया ने कहा, ‘मैं बच्चों के ऊपर और तुम नीचे रहो। हम अपने बच्चों के साथ ही मरेंगे। मैं पहले मरुंगी।’
परंतु चिड़ा नहीं माना, ‘नहीं, मैं ऊपर रहता हूं, तुम नीचे रहो। पहले मैं मरुंगा।’ अंत में यही तय हुआ कि चिड़ा ऊपर रहेगा। आग के नज़दीक आते ही चिड़ा फुर्ती से उड़ गया। आग ने घोंसले को जला दिया। चिड़िया और बच्चे मर गए। चिड़िया मर कर दूसरे जन्म एक राजा के यहां पैदा हुई परंतु उसे यह याद रहा कि कैसे धोखा देकर चिड़ा उन्हें मरने के लिए छोड़कर उड़ गया था। वह दुनिया के हर आदमी से इतनी नाराज़ थी कि वह किसी से बोलती भी न थी। चिड़ा भी कुछ समय बाद मर कर एक आदमी के रूप में पैदा हुआ। राजा ने घोषणा कर रखी थी, जो राजकुमारी को बात करना सिखा देगा वह उसका विवाह भी उससे कर देगा।
एक नवयुवक ने घोषणा सुनी। वह एक शोवा (बहुत बुद्धिमान व्यक्ति जिसे सभी कुछ मालूम होता है) के पास गया और उसकी मदद मांगी। शोवा चिड़िया के जलने वाली बात जानता था। उसने कहा, ‘तुम्हें याद है कि जब घाटी की बड़ी-बड़ी घास में आग लगी थी तब तुम चिड़िया और बच्चों को जलने के लिए छोड़कर उड़ गए थे। तुम वहां जाओ राजा के समाने तुम उसे चिड़ा-चिड़िया की वही कहानी सुनाना परंतु ध्यान रखना, यह कहने के बजाय कि तुम चिड़िया और बच्चों को जलता छोड़ कर उड़ गए थे, कहना कि चिड़िया घोसले के ऊपर थी और वह तुम्हें व बच्चों को जलने के लिए छोड़कर उड़ गई थी।’
वह नवयुवक राजा को साथ लेकर राजकुमारी के पास गया। और अपनी कहानी सुनाने लगा। बहुत समय पहले एक सुंदर चिड़िया का जोड़ा था। वे एक दूसरे को बहुत चाहते थे। उन्होंने मिलकर एक बूढ़े साधू की लम्बी दाढ़ी में घोंसला बनाया परंतु किसी बात पर गुस्सा होकर साधू ने घोंसला निकालकर घाटी की बड़ी-बड़ी घास पर फेंक दिया। कुछ लोगों ने घाटी की घास में आग लगा दी तो चिड़े ने चिड़िया से कहा मैं ऊपर रहता हूं तुम नीचे रहो। हम बच्चों के साथ ही मरेंगे। परंतु चिड़िया नहीं मानी। और उसने खुद ऊपर रहने की ज़िद की। परंतु जब आग पास आई तो वह फुर्र से उड़ गई। बेचारा चिड़ा बच्चों के साथ जलकर मर गया। राजकुमारी युवक के इस झूठ को सहन न कर सकी। वह गुस्से से लाल होकर चिल्ला पड़ी, ‘झूठ, बिलकुल झूठ। तेरी बात बिलकुल झूठ है। ऊपर चिड़ा था और वह धोखा देकर उड़ गया था।’
‘नहीं राजकुमारी जी, सच्चाई यही है कि चिड़िया ऊपर थी और मरने से डरकर उड़ गई थी।’ युवक ने फिर कहा।
वे दोनों ‘कौन बचा, कौन जला’ पर बहस करने लगे। दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए थे। राजा चकित होकर उन्हें देख रहा था। अंत में उसने उन्हें रोककर कहा, ‘नौजवान, तुम्हारी इस चिड़ा-चिड़ी की कहानी का कुछ-कुछ मतलब मैं समझ गया हूं। लगता है तुमने जानबूझकर चिड़िया को धोखा दिया था परंतु तुम राजकुमारी को बुलवाने में सफल रहे हो अत: वादे के अनुसार मैं राजकुमारी का विवाह तुमसे करता हूं। इस बार उसे धोखा मत देना।’
युवक ने मुस्कुराकर राजकुमारी की ओर देखा। फिर दोनों का विवाह हो गया।
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