शुक्रवार, 6 मई 2011

जानें ब्राह्मण परशुराम के महायोद्धा होने का रहस्य!!

भगवान परशुराम का अवतरण अक्षय तृतीया की शुभ घड़ी में माना गया है। उनका जन्म भृगु वंशीय ब्राह्मण कुल में हुआ, जो सामान्यत: सात्विक गुण, आचरण, ज्ञान, तप और विद्या के ज्ञाता होते हैं। यही कारण है कि परशुराम में भी अपार ज्ञानशक्ति और तपोबल की धनी थे। किंतु उनकी एक खूबी ने ब्राह्मण कुल को नई पहचान दी। वह बेजोड़ खासियत थी कि वह क्षत्रियों की तरह बलवान, वीर और पराक्रमी होने के साथ अद्भुत अस्त्र-शस्त्रों के स्वामी व युद्ध कला में माहिर थे। जिसके द्वारा ही उन्होंने दुष्ट क्षत्रियों का अंत किया। भगवान परशुराम के एक ब्राह्मण होकर इसी क्षत्रिय आचरण और व्यवहार का रहस्य बताती है यह पौराणिक कथा -
प्राचीन काल में कन्नौज नगर में राजा गाधि का राज था। उन्होंने अपनी रूपवती कन्या सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषि के साथ किया। विवाह के बाद ऋषि भृगु अपने पुत्र और पुत्रवधू सत्यवती को आशीर्वाद देने के लिए वहां पहुंचे। ससुर भृगु ऋषि के कहने पर सत्यवती ने अपनी माता के पुत्रवती होने का वर मांगा। तब भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो चरु पात्र दिए।
भृगु ऋषि ने सत्यवती को बताया कि इन चरुओं को तब ग्रहण करना जब तुम और तुम्हारी मां ऋतु स्नान कर ले। साथ ही तुम्हारी मां पुत्र की कामना से पीपल के पेड़ को अपनी बांहों में ले। इसी प्रकार तुम भी पुत्र की कामना से गूलर के पेड़ को अपनी बांहों में पकड़ों। ऋषि भृगु के जाने के बाद सत्यवती की मां को जब यह मालूम हुआ है सत्यवती ने अपने ससुर से श्रेष्ठ संतान होने के लिए चरु प्राप्त किया है तो उसके मन में कपट आ गया और श्रेष्ठ पुत्र की चाह में उसने अपने और सत्यवती के चरु पात्र की अदला-बदली कर दी।
जिससे सत्यवती ने अनजाने में अपनी माता के चरु को ग्रहण कर लिया। किंतु ऋषि भृगु ने अपनी ज्ञानशक्ति से सत्यवती की मां के इस बात को जान लिया। उन्होनें पुत्रवधू सत्यवती को बताया कि तुम्हारी माता के कपट के कारण तुमने अपनी मां के चरु का सेवन कर लिया है। इसलिए अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी क्षत्रिय जैसा व्यवहार करेगा।
इसी तरह से तुम्हारी मां का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मण का व्यवहार करेगा। किंतु सत्यवती ने अपने ससुर भृगु ऋषि से याचना कर यह अशीर्वाद पा लिया कि उसका पुत्र ब्राह्मण धर्म ही निभाएगा। किंतु पुत्र का पुत्र यानी पौत्र क्षत्रिय धर्म का पालन करेगा। यही कारण है कि सत्यवती के यहां ऋषि जमदग्रि का जन्म हुआ। ऋषि जमदग्रि की संतान भगवान परशुराम हुए। जिनका आचरण ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी क्षत्रियों की भांति रहा और उन्होंने दुराचारी हैहयवंशी क्षत्रियों से युद्ध कर उनका अंत कर दिया। भगवान परशुराम ने ऐसा कर न केवल ब्राह्मण धर्म की रक्षा की वरन इसमें जगत को सदा शुद्ध आचरण और वैचारिक पवित्रता को निडरता से अपनाने का भी संदेश छुपा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें