शुक्रवार, 6 मई 2011

क्यों मिला दुर्योधन को भीम के हाथों मरने का शाप?

व्यासजी की बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा जो कुछ आप कह रहे है, वही तो मैं भी कहता हूं। यह बात सभी जानते हैं। आप कौरवों की उन्नति और कल्याण के लिए जो सम्मति दे रहे हैं वही विदुर, भीष्म, और द्रोणाचार्य भी देते हैं। यदि आप मेरे ऊपर अनुग्रह करते हैं। कुरुवंशियों पर दया करते हैं तो आप मेरे दुष्ट पुत्र दुर्योधन को ऐसी ही शिक्षा दें। व्यासजी ने कहा थोड़ी देर में ही महर्षि मैत्रेय यहां आ रहे है। वे पाण्डवों से मिलकर अब हम लोगों से मिलना चाहते हैं। वे ही तुम्हारे पुत्र को मेल-मिलाप का उपदेश देंगे। इस बात की सूचना मैं दे देता हूं कि वे जो कुछ कहे, बिना सोच-विचार के करना चाहिए।
अगर उनकी आज्ञा का उल्लंघन होगा तो वे क्रोध में आकर शाप भी दे सकते हैं। इतना कहकर वेदव्यास जी चले गए। महर्षि मैत्रेय के आते ही अपने पुत्रों के सहित उनकी सेवा व सत्कार करने लगे। विश्राम के बाद धृतराष्ट्र ने बड़ी विनय के साथ पूछा-भगवन आपकी यहां तक की यात्रा कैसी रही? पांचों पांडव कुशलपूर्वक तो हैं ना। तब मैत्रेयजी ने कहा राजन में तो तीर्थयात्रा करते हुए वहां संयोगवश काम्यक वन में युधिष्ठिर से भेट हो गई। वे आजकल तपोवन में रहते हैं। उनके दर्शन के लिए वहां बहुत से ऋषि-मुनि आते हैं। मैंने वहीं यह सुना कि तुम्हारे पुत्रों ने पाण्डवों को जूए में धोखे से हराकर वन भेज दिया। वहां से मैं तुम्हारे पास आया हूं क्योंकि मैं तुम पर हमेशा से ही प्रेम रखता हूं।
उन्होंने युधिष्ठिर से इतना कहकर पीछे मुड़ते हुए दुर्योधन से कहा तुम जानते हो पाण्डव कितने वीर और शक्तिशाली है। तुम्हे उनकी शक्ति का अंदाजा नहीं है शायद इसलिए तुम ऐसी बात कर रहे हो। इसलिए तुम्हे उनके साथ मेल कर लेना चाहिए मेरी बात मान लो। गुस्से में ऐसा अनर्थ मत करो। महर्षि मैत्रेय की बात सुनकर दुर्योधन मुस्कुराकर पैर से जमीन कुरेदने लगे और अपनी जांघ पर हाथ से ताल ठोकने लगा। दुर्योधन की यह उद्दण्डता देखकर महर्षि को क्रोध आया। तब उन्होंने दुर्योधन को शाप दिया। तू मेरा तिरस्कार करता है और मेरी बात नहीं मानता। तेरे इस काम के कारण पाण्डवों से कौरवों का घोर युद्ध होगा और भीमसेन की गदा की चोट तेरी टांग तोड़ेगी।

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