मंगलवार, 3 मई 2011

....क्योंकि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है

द्रोपदी ने युधिष्ठिर से कहा आपमें और आपके महाबली भाइयों में प्रजापालन करने योग्य सभी गुण हैं। आप लोग दुख: भोगने योग्य नहीं है। फिर भी आपको यह कष्ट सहना पड़ रहा है। आपके भाई राज्य के समय तो धर्म पर प्रेम रखते ही थे। इस दीन-हीन दशा में भी धर्म से बढ़कर किसी से प्रेम नहीं करते। ये धर्म को अपने प्राणों से भी श्रेष्ठ मानते हैं। यह बात ब्राह्मण, देवता और गुरु सभी जानते हैं कि आपका राज्य धर्म के लिए भीमसेन , अर्जुन, नकुल, सहदेव और मुझे भी त्याग सकते हैं।मैंने अपने गुरुजनों से सुना है कि यदि कोई अपने धर्म की रक्षा करें तो वह अपने रक्षक की रक्षा करता है। आप जब पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हो गए थे। उस समय भी आपने छोटे-छोटे राजाओं का अपमान नहीं किया।
आपमें सम्राट बनने का अभिमान बिल्कुल नहीं था। आपने साधु, सन्यासी और गृहस्थों की सारी आवश्यकताएं पूर्ण की थी। लेकिन आपकी बुद्धि ऐसी उल्टी हो गई कि आपने राज्य, धन, भाई और यहां तक की मुझे भी दावं पर लगा दिया। आपकी इस आपत्ति-विपत्ति को देखकर मेरे मन में बहुत वेदना हुई। मैं बेहोश सी हो जाती हूं। ईश्वर हर व्यक्ति को अपने पूर्वजन्म के कर्मबीज के अनुसार उनके सुख-दुख, प्रिय व अप्रिय वस्तुओं की व्यवस्था करता है। जैसे कठपुतली सूत्रधार के अनुसार नाचती है, वैसे ही सारी प्रजा ईश्वर के अनुसार नाच रही है। सारे जीव कठपुतली के समान ही है सभी ईश्वर के अधीन है कोई भी स्वतंत्र नहीं है

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