मंगलवार, 3 मई 2011

मनुष्य पाप इसलिए करता है क्योंकि...

एक दिन शाम के समय पांडव कुछ दुखी से होकर द्रोपदी के साथ बैठकर बातचीत कर रहे थे। द्रोपदी कहने लगी- सचमुच दुर्योधन बड़ा क्रूर है। उसने हम लोगों को धोखे से वनवास पर भेज दिया। उसने एक तो जूए को धोखे से जीत लिया। आप जैसे धर्मात्माओं को उसने सभी में इतना भला-बुरा कहा। जब मैं आप लोगों को ये वनवास के कष्ट झेलते हुए देखती हूं तो मुझे बहुत दुख होता है।
आपके महल में रोज हजारो ब्राह्मण अपनी इच्छानुसार भोजन कराया जाता था। आज हम लोग फल-मूल खाकर अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। भीमसेन अकेले ही रणभूमि में सब कौरवों को मार डालने की क्षमता रखते हैं लेकिन आप लोगों का रुख देखकर मन मसोस कर रह जाते हैं। आप सभी को इस तरह दुखी देखकर मेरा मन दुखी हो रहा है।
राजा द्रुपद की पुत्री, महात्मा पाण्डु की पुत्रवधू मैं आज वन में भटक रही हूं। द्रोपदी ने फिर कहा पहले जमाने में राजा बलि ने अपने पितामाह प्रहलाद से पूछा था कि पितामह। क्षमा उत्तम है या क्रोध? आप कृपा करके मुझे ठीक-ठीक समझाइए।युधिष्ठिर ने कहा द्रोपदी मनुष्य क्रोध के वश में न होकर क्रोध को अपने वश में करना चाहिए। जिसने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली। उसका कल्याण हो जाता है। क्रोध के कारण ही मनुष्य पाप करता है। उसे इस बात का पता नहीं चलता कि क्या करना चाहिए क्या नहीं?इसलिए क्रोध से बड़ी क्षमा होती है।

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