गुरुवार, 5 मई 2011

...और रामजी ने किया ताड़का का वध

मुनि के बहुत समझाने राजा दशरथ मान गए। राजा ने बहुत प्रकार से आर्शीवाद देकर पुत्रों को विश्ववामित्र के हवाले कर दिया। फिर प्रभु माता के महल में गए और उनके चरणों में सिर नवाकर चल दिए। दोनों भाई प्रसन्न होकर चल दिए। भगवान के लाल नेत्र हैं चौड़ी छाती और विशाल भुजाएं हैं। कमर में पीतांबर और सुन्दर तरकश कसे हुए दोनों के हाथ में धनुष और बाण है। श्याम और गौर वर्ण के दोनों भाइयों की जोड़ी बहुत सुन्दर लग रही है।
रास्ते में चलते हुए उन्हें ताड़का दिखाई दी। उन्हें देखते ही वह गुस्सा करके दौड़ी। रामजी ने एक ही बाण से उसके प्राण ले लिए। तब ऋषि विश्वामित्र ने प्रसन्न होकर उन्हें ऐसी विद्या दी जिससे भुख व प्यास न लगे शरीर में असंतुलित बल और तेज का प्रकाश हों। तब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु को अपने आश्रम में ले आये और उन्हें बड़े प्यार से भोजन करवाया। सुबह रामजी ने विश्वामित्रजी से कहा आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए।

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