शादी यानी रस्मों के साथ ही नाच-गाना मस्ती, धूम। शादी की रस्मों में भरपूर मजाक मस्ती होती है। बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ निभाई जाती हैं। हमारे देश में ऐसी कई लोक परंपराएं हैं जिनके बारे में सुनकर आश्चर्य तो होता है। साथ ही मन में जिज्ञासा और हास्य का भाव उत्पन्न होते हैं। डोमकच या टूटया भी एक तरह की क्षेत्रिय परंपरा है। इसे राजस्थान में टूटया और बिहार में डोमकच कहा जाता है।
डोमकच की रस्म में स्त्री-पुरुषों के संबंध को कलात्मकता के साथ दर्शाया जाता है। इस रस्म में औरतें किसी तरह की कोई शर्म नहीं करती। यहां बस औरतें होती है और होती हैं उनकी उन्मुक्तता। यहां वे खुलकर सांसें लेती हैं, हंसती हैं। गाती हैं मजाक करती हैं। वह भी बगैर पुरुषों की अनुमति के। डोमकच या टूटया औरतों का मनोरंजन तो करती ही हैं साथ ही उनकी कुंठा को बाहर निकालकर उनमें नया उत्साह व उमंग भर देती है।
इसके माध्यम से हर पुरानी पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को दांपत्य जीवन जीने का तरीका बताती है। जबकि, इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि बारात में घर के सभी पुरुषों के चले जाने के बाद घर की सुरक्षा के लिए औरतों द्वारा मनोरंजन का कार्यक्रम तो यह होता ही है साथ ही युवतियों को शादी के बाद कैसा जीवन जीना है इस बारे में भी बताया जाता है। इस रस्म में एक महिला स्त्री और दूसरी पुरुष बनती है। इसमें महिलाओं को इतनी स्वतंत्रता रहती है कि बारात नहीं जाने वाले पुरुषों के साथ ये इतना मजाक करती हैं कि वे भाग खड़े होते हैं।
गांव में कई पुरुष बारात नहीं गया हो तो उसकी शामत आ जाती है।
कभी-कभी इसकी अति भी हो जाती है, जिसके गलत परिणाम निकल आते हैं। दरअसल इसका एक कारण यह भी है कि वर पक्ष के यहां रात्रि में शयन करना अच्छा नहीं माना शुभ नहीं माना जाता है। इस रस्म में गांव भर से अनाज व नकद भी इकट्ठा किया जाता है जिसका प्रसाद बनाया जाता है। यही प्रसाद दुल्हन के आने के बाद बांटा जाता है। इस तरह यह परंपरा पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध बनाए रखने के साथ ही समाज से ऊंच-नीच के भाव को भी खत्म करने का संदेश देती है।
डोमकच की रस्म में स्त्री-पुरुषों के संबंध को कलात्मकता के साथ दर्शाया जाता है। इस रस्म में औरतें किसी तरह की कोई शर्म नहीं करती। यहां बस औरतें होती है और होती हैं उनकी उन्मुक्तता। यहां वे खुलकर सांसें लेती हैं, हंसती हैं। गाती हैं मजाक करती हैं। वह भी बगैर पुरुषों की अनुमति के। डोमकच या टूटया औरतों का मनोरंजन तो करती ही हैं साथ ही उनकी कुंठा को बाहर निकालकर उनमें नया उत्साह व उमंग भर देती है।
इसके माध्यम से हर पुरानी पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को दांपत्य जीवन जीने का तरीका बताती है। जबकि, इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि बारात में घर के सभी पुरुषों के चले जाने के बाद घर की सुरक्षा के लिए औरतों द्वारा मनोरंजन का कार्यक्रम तो यह होता ही है साथ ही युवतियों को शादी के बाद कैसा जीवन जीना है इस बारे में भी बताया जाता है। इस रस्म में एक महिला स्त्री और दूसरी पुरुष बनती है। इसमें महिलाओं को इतनी स्वतंत्रता रहती है कि बारात नहीं जाने वाले पुरुषों के साथ ये इतना मजाक करती हैं कि वे भाग खड़े होते हैं।
गांव में कई पुरुष बारात नहीं गया हो तो उसकी शामत आ जाती है।
कभी-कभी इसकी अति भी हो जाती है, जिसके गलत परिणाम निकल आते हैं। दरअसल इसका एक कारण यह भी है कि वर पक्ष के यहां रात्रि में शयन करना अच्छा नहीं माना शुभ नहीं माना जाता है। इस रस्म में गांव भर से अनाज व नकद भी इकट्ठा किया जाता है जिसका प्रसाद बनाया जाता है। यही प्रसाद दुल्हन के आने के बाद बांटा जाता है। इस तरह यह परंपरा पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध बनाए रखने के साथ ही समाज से ऊंच-नीच के भाव को भी खत्म करने का संदेश देती है।
purush ki shamat yah pratha sambhavtah uttaribharat me ho sakatihai madhya pradesh ke
जवाब देंहटाएंNIMAD kshetr joki SATPUDA tathaVINDHYACHAI Parwaton ke bich basa hai me bhi aisi hi pratha hai kintu pursh ki SHAMAT tak nahi MAhilao ka
manoranjan ka ek AWASAR GANGORE ke tyohar par bhi
hotahai [kewal SHAMAT] tak nahi