कहते हैं विवाह एक जन्म का नहीं सात जन्मों का बंधन होता है। सात जन्म के इस रिश्ते को हर जन्म में और मजबूत बनाने के लिए विवाह संस्कार निभाया जाता है। विवाह संस्कार में पाणिग्रहण के समय अनेक परंपराए निभाई जाती हैं। उनमें से एक रस्म है सप्तपदी की। इस रस्म में दूल्हा व दुल्हन एक साथ सात कदम आगे बढ़ाते हैं।
सप्तपदी का महत्व: सभी स्मृतिकारों ने स्वीकार किया है। मनु के अनुसार इसके बिना विवाह पूर्ण नहीं माना जाएगा। इसमें वर और वधू अपना - अपना दाहिना पैर एक - एक पद के साथ आगे बढ़ाते हैं। पहले वर , पीछे कन्या। जिस जगह से सीधा पैर उठाया , उसी जगह बायां पैर रखते जाते हैं। इस प्रकार सात मंत्रों से सप्तपद चलते हैं। मंत्रों के माध्यम से वर वधू को सखी मान कर अन्न , ऊर्जा , धन , पशुओं और सभी ऋतुओं में सुख और सातों लोकों में यश की प्राप्ति की कामना करते हैं। कई मंत्रों में वर विश्व के पोषक विष्णु की सहायता से धनधान्य और सुख की प्राप्ति की कामना करता है। इस तरह हमारे यहां वर-वधु को इस रस्म के माध्यम से जन्मों का साथी ही नहीं दोस्त भी बना दिए जाते हैं।
सप्तपदी का महत्व: सभी स्मृतिकारों ने स्वीकार किया है। मनु के अनुसार इसके बिना विवाह पूर्ण नहीं माना जाएगा। इसमें वर और वधू अपना - अपना दाहिना पैर एक - एक पद के साथ आगे बढ़ाते हैं। पहले वर , पीछे कन्या। जिस जगह से सीधा पैर उठाया , उसी जगह बायां पैर रखते जाते हैं। इस प्रकार सात मंत्रों से सप्तपद चलते हैं। मंत्रों के माध्यम से वर वधू को सखी मान कर अन्न , ऊर्जा , धन , पशुओं और सभी ऋतुओं में सुख और सातों लोकों में यश की प्राप्ति की कामना करते हैं। कई मंत्रों में वर विश्व के पोषक विष्णु की सहायता से धनधान्य और सुख की प्राप्ति की कामना करता है। इस तरह हमारे यहां वर-वधु को इस रस्म के माध्यम से जन्मों का साथी ही नहीं दोस्त भी बना दिए जाते हैं।
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