गुरु का जीवन में आना समझ लें सबसे बड़ी उपलब्धि है। हम भौतिक मार्ग पर चल रहे हों या आध्यात्मिक जीवन जी रहे हों, गुरु का मार्गदर्शन दोनों ही स्थिति में जरूरी है। गुरु और जल एक जैसे होते हैं। जिस प्रकार जल का महत्व यह है कि वो सबमें मिलकर उसका मान, स्वाद, रूप बढ़ा देता है।
बिना जल के जीवन, जीवन ही नहीं रह जाता। ऐसे ही गुरु का महत्व है। हनुमानचालीसा की ३७वीं चौपाई में तुलसीदासजी ने गुरु को याद किया है।
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं।।
हे हनुमानजी! तीनों काल (भूत, भविष्य, वर्तमान) में आपकी जय हो। आप मेरे स्वामी हैं, श्री गुरु देव की तरह मुझ पर कृपा करिए। तीन बार जै जै जै कहा है, यानी तीनों काल में कृपा करें। इस चौपाई में 'गोसाईं' शब्द का प्रयोग किया है। 'गो' का मतलब इंद्रियाँ और 'साईं' का मतलब उसके मालिक।
जो अपनी इन्द्रियों के स्वामी हैं वे हनुमान हैं, जिसके वश में अपनी इन्द्रियां हैं, वे हनुमान हैं। आगे लिखा है, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं। हे हनुमानजी! आप मुझ पर गुरुदेव की तरह कृपा करें। मेरी रक्षा गुरु बनकर करें। देखिए, गुरु बनाना आजकल बहुत समस्या का काम हो गया है। किसे गुरु बनाएं? फिर ठीक गुरु मिले न मिले।
गुरु के मामले में हमारी निष्ठा दांवा-डोल होती रहती है। लेकिन यह सत्य है कि दुनिया में कृपा यदि कोई कर सकता है तो गुरु कर सकता है। भगवान एक बार नाराज हो जाएं, लेकिन गुरु कभी नाराज नहीं होते। गोस्वामीजी ने कहा- 'कोई चिन्ता की बात नहीं है। न गुरु मिले तो न सही।' उन्होंने तो घोषणा कर दी-
'कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।'
और कोई गुरु न मिले, तो हनुमानजी को ही गुरु बनाएं। इनसे अधिक कृपालु गुरु हमारे और कौन हो सकते हैं। सम्पूर्ण श्रीहनुमानचालीसा हमारी गुरु है और जो जीवन में गुरु को महत्व देना चाहते हैं उन्हें जल को भी उतना ही महत्व देना चाहिए। गुरु जीवन बनाएंगे, जल जीवन बचाएगा।
बिना जल के जीवन, जीवन ही नहीं रह जाता। ऐसे ही गुरु का महत्व है। हनुमानचालीसा की ३७वीं चौपाई में तुलसीदासजी ने गुरु को याद किया है।
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं।।
हे हनुमानजी! तीनों काल (भूत, भविष्य, वर्तमान) में आपकी जय हो। आप मेरे स्वामी हैं, श्री गुरु देव की तरह मुझ पर कृपा करिए। तीन बार जै जै जै कहा है, यानी तीनों काल में कृपा करें। इस चौपाई में 'गोसाईं' शब्द का प्रयोग किया है। 'गो' का मतलब इंद्रियाँ और 'साईं' का मतलब उसके मालिक।
जो अपनी इन्द्रियों के स्वामी हैं वे हनुमान हैं, जिसके वश में अपनी इन्द्रियां हैं, वे हनुमान हैं। आगे लिखा है, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं। हे हनुमानजी! आप मुझ पर गुरुदेव की तरह कृपा करें। मेरी रक्षा गुरु बनकर करें। देखिए, गुरु बनाना आजकल बहुत समस्या का काम हो गया है। किसे गुरु बनाएं? फिर ठीक गुरु मिले न मिले।
गुरु के मामले में हमारी निष्ठा दांवा-डोल होती रहती है। लेकिन यह सत्य है कि दुनिया में कृपा यदि कोई कर सकता है तो गुरु कर सकता है। भगवान एक बार नाराज हो जाएं, लेकिन गुरु कभी नाराज नहीं होते। गोस्वामीजी ने कहा- 'कोई चिन्ता की बात नहीं है। न गुरु मिले तो न सही।' उन्होंने तो घोषणा कर दी-
'कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।'
और कोई गुरु न मिले, तो हनुमानजी को ही गुरु बनाएं। इनसे अधिक कृपालु गुरु हमारे और कौन हो सकते हैं। सम्पूर्ण श्रीहनुमानचालीसा हमारी गुरु है और जो जीवन में गुरु को महत्व देना चाहते हैं उन्हें जल को भी उतना ही महत्व देना चाहिए। गुरु जीवन बनाएंगे, जल जीवन बचाएगा।
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