बुधवार, 22 जून 2011

...और सोलह श्रृंगार से सज गई सीताजी

जब सारे देवताओं ने दशरथ जी का वैभव देखा तो वे दशरथजी की सराहना करने लगे। सभी नगाड़े बजाकर फूल बरसाने लगे। शिवजी ब्रह्माजी आदि टोलियां बनाकर विमानों पर चढ़े और प्रेम व उत्साह से भरकर श्री रामचंद्रजी का विवाह देखने चले। जनकपुर को देखकर देवता इतने अनुरक्त हो गए कि उन सबको अपने-अपने लोक बहुत तुच्छ लगने लगे। सभी शादी का विचित्र मण्डप आलौकिक रचनाओं को देखकर चकित हो रहे हैं।
तब शिवजी ने सब देवताओं को समझाया कि तुम लोग आश्चर्य में ये मत भूलो। धीरज से विचार तो करो कि यह सीताजी का और ब्रह्माणों के परम ईश्चर साक्षात श्री रामचंद्रजी का विवाह है। जिनका नाम लेते ही जगत में सारे की जड़ कट जाती है, ये वही श्रीसीतारामजी है। इस तरह सभी देवताओं को रामजी ने समझाया और फिर नंदीश्चर को आगे बढ़ाया।
देवताओं ने देखा कि दशरथजी मन में बड़े ही प्रसन्न हो रहे हैं। रामजी का सुंदर मुख चंद्रमा के समान है। जिस घोड़े पर रामजी विराजमान हैं वह भी इतना सुंदर लग रहा है मानो कामदेव ने ही घोड़े का रूप धारण कर लिया है। चारों और से फूलों की वर्षा होने लगी। दशरथजी अपनी मण्डली के साथ बैठे। आकाश और नगर में शोर मच रहा है।श्रीरामचंद्रजी मण्डप में आए और अघ्र्य देकर आसन पर बैठाए गए। सुंदर मंगल का साज सजाकर स्त्रियां और सहेलिया सीताजी को लेकर चली। वे सोलह श्रृंगार में बहुत सुंदर लग रही है। इस तरह सीताजी मंडप में आई और मंत्रोच्चार शुरू हो गया।

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