मंगलवार, 5 जुलाई 2011

तब अगस्त्य मुनि समुद्र पी गए और...

देवताओं की यह बात सुनकर अगस्त्यजी अपनी पत्नी के सहित विन्ध्याचल के पास आए और उससे बोले, पर्वत प्रवर मैं किसी कार्य के लिए दक्षिण की तरफ जा रहा हूं। इसलिए मेरी इच्छा कि तुम मुझे उधर जाने का रास्ता दो। जब तक मैं उधर से लौटू़। तब तक तुम मेरी प्रतिक्षा करना, उसके बाद अपनी इच्छा के अनुसार बढ़ते रहना।

विंध्याचल से यह कहकर अगस्त्यजी दक्षिण की ओर चले गए और वहां से आज तक नहीं लौटे। इतनी कथा सुनाने के बाद लोमेश मुनि ने युधिष्ठिर से कहा जितनी कथा मुझे तुम्हे सुनानी थी सुना चूका। अब मैं तुम्हे कालकैयों का संहार कैसे हुआ वह कथा सुनाता हूं। देवताओं की प्रार्थना सुनकर अगस्त्य ऋषि ने कहा आप लोग यहां कैसे आए हैं और मुझसे क्या वर चाहते हैं? तब देवताओं ने कहा

हमारी ऐसी इच्छा है कि आप महासागर को पी जाइए।

ऐसा होने पर हम समुद्र में छूपे सारे कालकेय राक्षसों को मा डालेंगे। देवताओं की बात सुनकर मुनिवर अगस्त्य ने कहा अच्छा मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा और संसार का दुख दूर कर दूंगा। तब देवताओं की मार से कालकेय का संहार करने लगे। जब सभी राक्षसों का संहार हो गया तो सभी देवता ब्रम्ह्माजी के पास आए और उनसे समुद्र भरने की प्रार्थना की।

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