मंगलवार, 5 जुलाई 2011

इसलिए सरस्वतीजी ने मंथरा की बुद्धि फेर दी

मुनि ने वेदों के अनुसार सभी को आज्ञा दी नगर में बहुत से मंडप सजवाओ। आम, सुपारी और केले के वृक्ष नगर की गलियों में चारों और रोप दो। सारे बाजारों को तुरंत सजाने को कह दो। कुल देवता की पूजा करो और ब्राह्मणों की सेवा करो। ध्वजा, पताका, घोड़े, हाथी आदि सभी सजाओ। वसिष्ठजी ने जिसे जैसा काम बताया। उसने वैसा काम किया।

सबसे पहले जाकर रानिवास में जिन्होंने यह समाचार सुनाया, उन्होंने बहुत से आभूषण और वस्त्र पाए। रानियों ने रामजी व कौसल्याजी ने ब्राह्माणों को बुलाकर बहुत दान दिया। लेकिन देवता यह सब देखकर चिंतित हैं। इसलिए उन्होंने माता सरस्वती को बुलाकर कहा माता हम बहुत बड़ी परेशानी में है आज आप वही कीजिए। जिससे सभी का कल्याण हो।

देवताओं की विनती सुनकर सरस्वतीजी खड़ी-खड़ी पछता रही हैं। यह देखकर देवता बोले आपको ऐसा करने से किसी तरह का कोई दोष नहीं लगेगा। आप देवताओं के हित के लिए अयोध्या जाओ। मंथरा नाम की एक मंदबुद्धि दासी थी। सरस्वती माता उसकी बुद्धि फेरकर चली गई। मंथरा ने देखा कि नगर सजाया हुआ है। उसने लोगों से पूछा कि कैसा उत्सव है।

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