बुधवार, 6 जुलाई 2011

तरक्की के लिए यह बात भी जरूरी है...

दुनियाभर में उन्नति का बड़ा शोर है। निजी, परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए बड़े-बड़े अभियान चल रहे हैं। हमें इन सभी क्षेत्रों में अपना योगदान देना चाहिए। लेकिन इसी के साथ लगातार आत्म-उन्नति के लिए अत्यधिक सजग और सक्रिय होना पड़ेगा। इसके लिए स्वाध्याय जरूरी है यानी स्वयं का अध्ययन।
यह दो तरीके से हो सकता है। पहला, हम खुद इस काम को करें, अपने को देखते रहें। दूसरा, हमारे पास कुछ ऐसे लोग होना चाहिए जो कोच की तरह दूर से हमें देखकर समझाते रहें। ये माता-पिता, जीवनसाथी, मित्र, गुरु के रूप में भी हो सकते हैं। मानसिक उन्नति में इन लोगों का योगदान इसलिए अधिक होता है कि यह हमारे अंतर तल को स्पर्श कर सकते हैं।
जो लोग मानसिक रूप से उन्नत और स्वस्थ होते हैं उनके लिए जीवन में सुख और दु:ख के अर्थ बदल जाते हैं। शांति और सुख दो अलग-अलग बातें हैं। शांति का मतलब सुख बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए। सुख अपनेआप में एक झंझट हो सकती है। सुख कई तरह की उठापटक भी जीवन में लेकर आता है।
दु:ख तो परेशान करता ही है। सुख और दु:ख दोनों की अपनी प्रचण्डता होती है। दोनों भीषण, विकट और विकराल रूप ले लेते हैं। लिहाजा संतोष दोनों में ही गायब हो जाता है। सुख के उत्पात दु:ख के उपद्रव से कम नहीं होते है। तनाव दोनों में है, शक्ल बदल जाती है। सुख भी बेचैन करता है और दु:ख भी व्यग्रता में डाल देता है।
दु:ख में यदि संघर्ष है तो सुख की खींचातानी भी कम नहीं है। कुलमिलाकर दोनों ही विश्राम रहित हैं। दोनों में ही थकावट है। यदि इन दोनों स्थितियों में निढाल होने से बचना चाहें तो शांति ढूंढना पड़ेगी और शांति उन्हें ही मिलेगी जो मानसिक रूप से अपने आप को उन्नत कर लेंगे।

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