बुधवार, 6 जुलाई 2011

मुंह खोलते ही गंवानी पड़ी जान!

कई बार चुप रहना बोलने से अधिक जरूरी हो जाता है। यहां तक कि कई बार तो चुप रहने में ही भलाई छुपी होती है। गलत समय पर अनावश्यक बोलने की आदत किसी के लिये जानलेवा भी हो सकती है। ऐसा ही हुआ उस कछुवे के साथ जो चुप रहने की समझाइस मिलने के बावजूद अपने गुस्से पर काबू न रख सका और बोल पड़ा। आइये चलें उस रोचक घटना की ओर जिसमें मूर्ख कछुवे को अपनी जान गंवाना पड़ी.....
एक बार माघ के महिने में बहुत जोरदार बारिश हुई। दूर-दूर तक सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था। एक कछुआ जान बचाने के लिये जैसे-तैसे झाड़ी की टहनी को मुंह से पकड़े हुए खुद को बाढ़ के पानी में बचने से बचा रहा था। कछुए की ऐसी हालत देखकर ऊपर उड़ती दो बतखों को उस पर दया आ गई। बतखों ने उस कछुए से कहा कि इस लकड़ी को अपने मुंह से ताकत से पकड़ लो, हम तुम्हें उड़ाकर किसी सुरक्षित सूखे स्थान पर पहुंचा देंगे। बतखों ने कछुए को समझा दिया कि इतना ध्यान रखना कि किसी भी परिस्थिति में भूल कर भी अपना मुंह मत खोलना।
इस तरह कछुए को समझाकर दोनों बतखों ने लकड़ी को दोनों तरफ से पकड़ कर ऊपर बहुत ऊंचाई पर उडऩा शुरु किया ताकि ऊंचाई से सूखा स्थान भी खोजा जा सके। उड़ते हुए वे एक गांव के ऊपर से गुजर रहे थे, तभी गांव के लोगों की नजर उनके ऊपर पड़ी और तीनों को इस तरह उड़ते देखकर हंसने लगे।
बतखों ने तो लोगों की हंसी पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन लोगों को अपनी हंसी उड़ाते देख कर कछुए को गुस्सा आ गया। गुस्से में कछुआ बतखों की बात भूल गया और मुंह से लकड़ी छोड़कर गांव वालों पर चिल्लाने लगा। लेकिन मुंह खोलते ही उसके मुंह से वह लकड़ी तो छूट ही गई जिसके सहारे वह उड़ रहा था। लकड़ी छूटते ही कछुआ इतनी ऊंचाई से सीधा जमीन पर पत्थरों के ऊपर आकर गिरता है। इतनी ऊंचाई से पत्थरों पर गिरते ही उसकी जान निकल जाती है और इस तरह उस असंयमी कछुए को अपने मन पर काबू न रखने की सजा मौत के रुप में मिलती है।
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