मंगलवार, 12 जुलाई 2011

अच्छे-बुरे की ऐसे करें पहचान...

भौतिक चीजों के असली-नकली होने के मापदण्ड स्थूल होते हैं। थोड़ी अक्ल हो तो हम पहचान सकते हैं कौन सी चीज सही है और कौन सी गलत। लेकिन जब जीवन के गुणों और दुर्गुणों की बात आती है और उसमें असली नकली की पहचान करना हो तो झंझट शुरू हो जाती है।
मन गुणों और दुर्गुणों पर लेपन करने में बड़ा माहिर होता है। संसार के काम करते हुए त्याग और वैराग्य लाना कठिन हो जाता है, जबकि शांति के लिए दोनों जरूरी हैं। वैराग्य का सामान्यतया अर्थ गलत लगा लिया जाता है।
त्याग आदमी तभी कर सकता है जब उसके भीतर वैराग्य जागा हो। वरना त्याग भी एक तरह का शोषण बन जाएगा, सौदा बन जाएगा। वैराग्य का यह अर्थ नहीं होता कि चीजों को छोड़ दें। बल्कि इसका सही अर्थ यह होगा कि उन्हीं चीजों का सद्पयोग दूसरों के हित में होता रहे।
जितना हम दूसरों को सही लाभ पहुंचा सकेंगे उतना ही हमारे वैराग्य और त्याग का मतलब सही होगा। इसलिए कहते हैं अपने भीतर थोड़ी वैराग्य की वृत्ति होना जरूरी है। जब-जब आप भीतर से अशांत हों थोड़ा अपने वैरागी लेवल को चैक करिए। बिना वैराग्य जागे हम अपने भीतर का जो भी रूपांतरण करना चाहेंगे वह नकली होगा। इसलिए नकली सद्गुण हमें सरल मालूम पड़ते हैं।
असली सद्गुण अपनाने के लिए साहस की जरूरत होती है। जब तक भीतर वैराग्य नहीं होता, साहस नहीं जागेगा। वैराग्य का अर्थ ही यह है छोडऩे की शक्ति। पकडऩे की चाह भय पैदा करती है और छोडऩे की इच्छा ताकत देती है। यदि वैराग्य भीतर है तो अहंकार छोडऩे का साहस आसान होगा। यह आध्यात्मिक समीकरण हम अपने हर सद्गुण और दुर्गुण के साथ लगा सकते हैं।

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