सोमवार, 18 जुलाई 2011

बड़े-बड़े लोग हो जाते हैं इस कमजोरी के शिकार...

अनेक तरह से बलशाली लोग भी मानसिक दुर्बलता के शिकार पाए जाते हैं। हमारे संत-महात्माओं ने तो मानसिक बल पर खूब जोर दिया है और काम भी किया है। जब भी जीवन में निराशा आए, अपने पुराने सड़ेगले विचारों को त्यागें।
विचार भी लगातार बने रहने से बासी हो जाते हैं, इन्हें भी मांजना पड़ता है, इनकी भी साफ-सफाई करना पड़ती है। कुछ समय स्वयं को विचार शून्य रखना भी विचारों की साफ-सफाई है। यह शून्यता गलत विचारों को गलाती है और इसके बाद आने वाले विचार दिव्य और स्पष्ट होंगे। विचार शून्य होने की स्थिति का नाम ध्यान, मेडिटेशन है।
कुछ समय अपने ऊपर अपने ही द्वारा अपने ही विचारों के आक्रमण को रोकिए। कुछ लोग काफी समय ध्यान की विधि ढूंढने में लगा देते हैं। कौन सी विधि से ध्यान करें इसमें ही उनके जीवन का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। ध्यान के पहले इतना अधिक विचार किया जाता है कि आदमी विचारों में ही उलझ जाता है। थोड़ा समझें ध्यान की अपनी कोई विधि नहीं होती, ध्यान में जो बाधाएं आती हैं उन बाधाओं को हटाने-मिटाने की विधियां जरूर होती हैं।
ध्यान तो एक अवेयरनैस है। एक ऐसा होश जो अपनी शून्यता से विचारों को धो देता है। ताजे और प्रगतिशील विचार रोम रोम में समाते हैं और उनके नियमित उपयोग की कला भी आ जाती है। जो विधि जिसको जम जाए वह ठीक है लेकिन हर विधि एक रास्ता है बस बाधा को हटाने के लिए उसे ही ध्यान मानकर पकडऩा गलत होगा।
मानसिक दुर्बलता से मुक्ति पाने के लिए कोई न कोई ऐसा मार्ग पकड़ लें जो आपको ठीक लगे, ध्यान का स्वाद स्वयं आ जाएगा।

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