शनिवार, 9 जुलाई 2011

दुल्हन कुछ इस तरह करती थी दूल्हे का स्वागत

शादी सात जन्मों का बंधन होता है। शादी से दो परिवार आपस में जुड़ जाते हैं। हमारे देश में शादी से जुड़ी विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराएं है लेकिन वैदिक काल में जो पंरपराएं थी वो वर्तमान विवाह पद्धति से एकदम ही भिन्न थी।

आज के हिन्दू विवाह पद्धति से बहुत अलग हुआ करती थी। उस समय में जब लड़के वाले बारात लेकर आते थे तो दूल्हे का स्वागत खुद दुल्हन करती थी। वैदिक परंपरा के अनुसार जब वर बारात लेकर वधु के शहर में पहुंचता है।
उसके बाद दोनों को अपने-अपने स्थान पर स्नान करवाकर विवाह संस्कार के लिए तैयार किया जाता है। जब वर कन्या पक्ष वालों के यहां पहुंचता है तो कन्या यज्ञ वेदी के पास आकर वर को कहती है- आइए हम आपका स्वागत करते हैं। कन्या वर को आसन देती है। इसके बाद कन्या के हाथ से आसन लेकर वर बैठ जाता है।
फिर दुल्हन - दूल्हे को पैर धोने के लिए जल देती है। हाथ पांव और मुंह धुलवाने के बाद कन्या आचमन के लिए वर को जल देती है।
उसके बाद कन्या वर को मधुपर्क खिलाती है जिसमें दही,शहद व घी मिलाया जाता है। दूल्हा- दुल्हन से मधुपर्क लेकर थोड़ा सा खा लेता है व चारों दिशाओं में मधुपर्क के छींटे फेंकता है। उसके बाद कन्या पक्ष की तरफ से वर को गौ-दान किया जाता है। उसके बाद दूल्हे के द्वारा दुल्हन के साथ फेरे लेता है।
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