शनिवार, 16 जुलाई 2011

इन सात कस्मों को लेकर बन जाते हैं सात जन्मों के साथी

फेरों के बाद सप्तपदी की विधि की जाती है। फेरों की तरह ही हिन्दू धर्म में यह भी एक ऐसी प्रथा है जिसके बिना विवाह अधूरा माना जाता है। यज्ञकुंड के उत्तर की ओर खड़े होकर वहर अपना दाहिना हाथ वधू के दाहिने कंधे पर रखता है दोनों का मुंह उत्तर की तरफ होता है। तब कुछ मंत्र बोलकर दूल्हा-दुल्हन सात कदम साथ-साथ चलते हैं।
पहले कदम में वर-वधू एक साथ कदम रखते हैं। वर कहता है- अन्न के लिए यह पहला कदम हम एक साथ रखते हैं, तेरा मन मेरे मन के अनुकूल हो परमात्मा तुझे मेरे अनुकूल बनाये, हम दोनों मिलकर संतान को प्राप्त करें वे वृद्धावस्था तक जीने वाली हों। दूसरा कदम वर-वधू एक साथ चलते हैं तो वर कहता है शारीरिक बल के लिए यह दूसरा कदम हम साथ-साथ रखते हैं। तेरा मन मेरे मन के अनुकूल हो, परमात्मा तुझे मेरे अनुकूल बनाएं। हम दोनों मिलकर संतान को प्राप्त करें जो वृद्धावस्था तक जीने वाली हों। तीसरा कदम वर-वधू एक साथ रखते हैं वर कहता है धन के लिए तीसरा कदम हम एक-साथ रखते हैं तेरा मन मेरे मन के अनुकूल हो।
चौथा कदम वर-वधू सुख के लिए एक साथ आगे बढ़ाते हैं ऐसे ही पांचवा कदम प्रजा के लिए , छटा कदम सारी ऋतुएं साथ बिताने के लिए और सातवां कदम इस भाव के साथ आगे बढ़ाते हैं कि हम दोनों अच्छे दोस्त रहेंगे। हम दोनों के मनअनुकूल हो, परमात्मा तुझे मेरे अनुकूल बनाएं। हम दोनों मिलकर संतान को प्राप्त करें जो वृद्धावस्था तक जीने वाली हों। इस तरह ये सात कस्में लेकर दूल्हा-दुल्हन सात जन्मों के साथी बन जाते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें