शनिवार, 16 जुलाई 2011

काल भी थर्राता है शिव के करिश्माई रूप से..

शास्त्रों में शिव के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ कहलाए, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर पुकारे गए। भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं।
इसी क्रम में शिव का एक अद्भुत स्वरूप हैं - मृत्युञ्जय। माना गया है कि शिव इस स्वरूप की दिव्य शक्तियों के आगे काल भी पराजित हो जाता है। मृत्युञ्जय का मतलब भी होता है - मृत्यु को जीतने वाला। काल के अलावा यह शिव शक्ति सभी सांसारिक पीड़ा व भय को हर लेती है। शिव द्वारा भयंकर जहर पीना इस बात को जाहिर करता है।
ऐसा है मृत्युञ्जय स्वरूप -
शास्त्रों के मुताबिक शिव का मृत्युञ्जय स्वरुप अष्टभुजाधारी है। सिर पर बालचन्द्र धारण किए हुए हैं। कमल पर विराजित हैं। ऊपर के हाथों से स्वयं पर अमृत कलश से अमृत धारा अर्पित कर रहें हैं। बीच के दो हाथों में रुद्राक्ष माला व मृगमुद्रा। नीचे के हाथों में अमृत कलश थामें हैं।
कैसे पराजित होता है काल?
महामृत्युञ्जय के मृत्यु को पराजित करने के पीछे शास्त्रों के मुताबिक यह भी दर्शन है कि असल में यह स्वरुप आनंद, विज्ञान, मन, प्राण व वाक यानी शब्द, वाणी, बोल इन पांच कलाओं का स्वामी है। व्यावहारिक जीवन में भी जो इंसान इन कलाओं से माहिर और पूर्ण होता है। वह सुखी, निरोगी, पीड़ा और तनाव मुक्त हो दीर्घ काल तक जीवन जी सकता है।
यही कारण है कि आनंद स्वरूप महामृत्युञ्जय शिव की उपासना से मिलने वाली प्रसन्नता से मौत ही मात नहीं खाती बल्कि निर्भय व निरोगी जीवन भी प्राप्त होता है। जिसके लिए महामृत्युञ्जय मंत्र का स्मरण भी बेहद असरदार माना गया है।

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