सोमवार, 25 जुलाई 2011

हनुमान से सीखें प्लानिंग को सफल कैसे बनाया जाए....

योजना जितनी स्पष्ट पूर्व नियोजित होगी परिणाम उतने ही सफलता लिए रहेंगे। आइए, किसी कार्य से पूर्व प्लानिंग कैसे की जाए हनुमानजी से सीख लें। सुंदरकाण्ड में जब वे सीताजी की खोज के लिए लंका की ओर उडऩे की तैयारी कर रहे थे तब तुलसीदासजी ने लिखा -

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।


समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी खेल-खेल में ही कूद कर उस पर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके हनुमानजी उस पर से बड़े वेग से उछले। यहां एक शब्द आया है कौतुक यानी खेल-खेल।
हनुमानजी जा तो रहे थे युद्धभूमि में लेकिन वृत्ति थी खेल की। हनुमानजी कहते हैं जिंदगी को खेल की तरह लिया जाए। खेल में भी एक हारेगा, दूसरा जीतेगा। लेकिन खेल में प्रतिस्पर्धा होती है हिंसा नहीं होती, वैमनस्य नहीं होता। हारने वाला खिलाड़ी जानता है एक दिन फिर जीतने का मौका मिलेगा।
पर्वत पर चढऩे का अर्थ है अपना आधार दृढ़ रखा। जिन्हें जीवन में लम्बी छलांग लगाना हो उन्हें अपना बेस मजबूत रखना चाहिए। इसका सीधा सा अर्थ है योजना व्यवस्थित रखी जाए उसके बाद काम किया जाए। दृढ़ आधार का एक और अर्थ है जिंदगी की ईमारत की नींव बचपन होती है। जिसका बचपन दृढ़ है, सुलझा हुआ है उसकी जवानी फिर नहीं लडख़ड़ाएगी।
आगे शब्द लिखा है - बार-बार। हनुमानजी ने श्रीरामजी को बार-बार याद किया। अपने हर अभियान में परमात्मा को निरंतर याद रखिएगा। भक्त का जीवन सांप-सीढ़ी के खेल की तरह होता है। कभी शीर्ष पर तो कभी सांप के मुंह में अटक कर वापस पूंछ पर आना पड़ता है। भक्ति करते हुए कभी बहुत अच्छा लगता है तो दुर्गुण के थपेड़ों से अचानक पतन भी हो जाता है। इसलिए हनुमानजी सिखाते हैं कि परमात्मा से जुड़ाव की निरंतरता बनाए रखें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें