शनिवार, 9 जुलाई 2011

...इसलिए राजा ने अपने पुत्र का त्याग कर दिया

अपने धर्म की रक्षा और प्रजा के हित के जिए मैंने तुम्हारे पिता को भी त्याग दिया है। तब युधिष्ठिर ने लोमेश मुनि से पूछा-राजा ने अपने पुत्रों को त्याग क्यों कर दिया था? तब लोमेश मुनि ने बोला -महाराज सगर का शैव्या से गर्भ से उत्पन्न पुत्र का नाम असमंजस था। वह अपने पुरवासियों के कमजोर बच्चों को रोने चिल्लाने पर भी गला फाड़कर नदी में डाल देता था। इसी कारण सभी पुरवासी उससे बहुत डरते थे। इस सब से परेशान होकर वे सभी पुरवासी राजा राजा के पास गए। पुरवासियों की बात सुनकर महाराज सगर उदास हो गए ।
फिर मंत्रियों को बुलाकर उन्होंने कहा यदि आप लोग मेरा कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो तुरंत ही एक काम करें- मेरे पुत्र असमंजस को अभी इस नगर से बाहर निकाल दीजिए। राजा की आज्ञा के अनुसार सभी पुरूवासियों के हित के लिए उन लोगों ने ऐसा ही किया। सगर ने अंशुमान से कहा बेटा में तुम्हारे पिता को नगर से निकाल चुका हूं। मेरे और सब पुत्र भस्म हो गए हैं। यज्ञ का घोड़ा भी नहीं मिला है। इसलिए मुझे बहुत दुख हो रहा है। तुम किसी तरह से वह घोड़ा ढूँढ़ कर लाओ ताकि में यज्ञ सम्पन्न कर पाऊं।
अब अंशुमान उसी स्थान पर आया जहां पृथ्वी खोदी गई थी। उसी मार्ग से उसने समुद्र में प्रवेश किया। वहां उसने उस घोड़े और महात्मा कपिल को देखा। उनके दर्शन कर उसने प्रणाम किया और उनकी सेवा में वहां आने का निवेदन किया। अंशुमान की बातें सुनकर महर्षि कपिल बहुत प्रसन्न हुए। उससे बोले मैं तुम्हे वर देना चाहता हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो मांग लो। अंशुमान ने पहले वर में अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा मांगा और दूसरे में पितरों को पवित्र करने की प्रार्थना की।

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