शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

...और तब मारे गए राजा के साठ हजार पुत्र...

उनका घोड़ा पृथ्वी पर घूमने लगा। राजा के पुत्र रखवाली पर नियुक्त थे। घूमता-घूमता वह जलहीन समुद्र के पास पहुंचा, जो उस समय भयंकर लग रहा था। राजकुमार बड़ी सावधानी से उसकी चौकसी कर रहे थे। वह वहां पहुंचने पर अदृश्य हो गया। जब वह ढूंढने पर भी न मिला तो राजपुत्रों ने समझा कि उसे किसी न चुरा लिया है और राजा सगर के पास आकर ऐसा ही कह दिया। हमने समुद्र, द्वीप, वन, नंद सभी छान डाले, परंतु हमें न तो घोड़ा ही मिला और न उसको चुरानेवाला। पुत्रों की यह बात सुनकर सगर को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने आज्ञा दी कि जाओ फिर घोड़े की खोज करो और बिना उस यज्ञपशु के लौटकर मत आना।
पिता का ऐसा आदेश पाकर सगरपुत्र फिर सारी पृथ्वी में घोड़े की खोज करने लगे। अंत में उन्होंने एक जगह पृथ्वी फटी हुई देखा। उसमें उन्हें एक छिद्र भी दिखाई दिया। तब वे कुदाल और हथियारों से छिद्र को खोदने लगे। खोदते-खोदते उन्हें बहुत समय बीत गया। लेकिन फिर भी उन्हें घोड़ा नहीं दिखाई दिया। इससे उनका गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया और उन्होंने ईशान्य कोण में पाताल लोक तक खोद डाला। वहां उन्होंने अपने घोड़े को घूमता देखा तो उसके पास ही उन्हें महात्मा कपिल भी दिखाई दिए।
घोड़े को देखकर कपिल मुनि को गुस्सा आ गया। उन्होंने गुस्से में आकर सभी मंद बुद्धि पुत्रों को भस्म कर दिया। जब नारद जी ने राजा को जाकर यह समाचार सुनाया तो वे उदास हो गए। लेकिन तभी उन्हें शिवजी के दिए वर का स्मरण हो गया। इसलिए उन्होंने अपने पोते अंशुमान को बुलाकर कहा मेरे साठ हजार पुत्र नष्ट हो गए।
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