शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

आदतें हमें नहीं, हम आदतों को पकड़ते हैं

इंसान को अगर खुद को बेहतर बनाना है और अपनी किसी बुराई को छोडऩा है तो उसे इस बात की शुरूवात खुद से ही करनी होगी। किसी और के भरोसे आप अपनी किसी बुराई को नहीं छोड़ सकते। बस जरूरत है तो केवल दृढ़ विश्वास की।
आइये चलते हैं एक ऐसी ही वास्तविक घटना की तरफ जो दृढ़ विश्वास और अटूट संकल्प की जरूरत बताती है-
एक बार भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के पास एक शराबी युवक आया और हाथ जोड़कर कहने लगा कि गुरूजी मैं बहुत परेशान हूं। यह शराब मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती। आप कुछ उपाए बताइए जिससे मुझे पीने की इस आदत से मुक्ति मिल सके।विनोबाजी ने कुद देर तक सोचा और फिर बोले- अच्छा बेटा तुम कल मेरे पास आना, किंतु मुझे बाहर से ही आवाज देकर बुलाना, मैं आ जाऊंगा युवक खुश होकर चला गया।
दिन वह फि र आया और विनोबाजी के कहे अनुसार उसने बाहर से ही उन्हें आवाज लगाई। तभी भीतर से विनोबाजी बोले- बेटा। मैं बाहर नहीं आ सकता। युवक ने इसका कारण पूछा, तो विनोबाजी ने कहा- यह खंबा मुझे पकड़े हुए है, मैं बाहर कैसे आऊं। ऐसी अजीब सी बात सुनकर युवक ने भीतर झांका, तो विनोबाजी स्वयं ही खंबे को पकड़े हुए थे। वह बोला- गुरुजी। खंबे को तो आप खुद ही पकड़े हुए हैं। जब आप इसे छोडेंगे, तभी तो खंबे से अलग होंगे न।युवक की बात सुनकर विनोबाजी ने कहा- यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था कि शराब छूट सकती है, किंतु तुम ही उसे छोडऩा नहीं चाहते। जब तुम शराब छोड़ दोगे तो शराब भी तुम्हें छोड़ देगी।उस दिन के बाद से उस युवक ने शराब को हाथ भी नहीं लगाया। वास्तव में दृढ़ निश्चय या इच्छाशक्ति, संकल्प से बुरी आदत को भी छोड़ा जा सकता है।
यदि व्यक्ति खुद अपनी बुरी आदतों से मुक्ति पाना चाहे और इसके लिए मन मजबूत कर संकल्प हो जाए, तो दुनिया की कोई ताकत उसे अच्छा बनने से नहीं रोक सकती।
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