शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

शादी को धार्मिक संस्कार क्यों माना गया है?

वेदों के अनुसार हमारी समाजिक व्यवस्था में विवाह के तीन उद्देश्य माने गए हैं। धर्म,प्रजा और रति,। आजकल शादी का पहला उद्देश्य है विषय भोग, विषय भोग के साथ संतान आ जाती है। दूसरा उद्देश्य है धर्म का पालन व तीसरा है समाज के लिए धर्म पालन। समाज ने जो भी नियम कायदे बनाए हैं उन सभी का पालन शादी के बाद ही संभव है। लेकिन वैदिक व्यवस्था के अनुसार शादी का सबसे मुख्य उद्देश्य धर्म का पालन व सामाजिक व्यवहारों का पालन करना होता है।

यह माना जाता है कि हर व्यक्ति तीन तरह के ऋण से दबा हुआ है। ऋषि ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण,। हमारे ऋषियों ने यह ज्ञान हम तक पहुंचाया है। उन ऋषियों के लिए हम ऋणी है। समाज के विद्वान लोग हमारे सामाजिक व्यवहार को बनाए रखते हैं, इसलिए हमें देवों के भी ऋणी है। माता-पिता जिन्हें हमें जन्म दिया, इसलिए हम माता-पिता के ऋणी हैं। वेदों में माना गया है कि जिन्होंने हमें जन्म दिया वैसे हमें भी विवाह करके परिवार और समाज को आगे बढ़ाकर पितृ ऋण चुकाना होता है।
इसीलिए इस तरह वंश को आगे बढ़ाना हमारा धर्म और कर्तव्य दोनों है। इसलिए वेदों के अनुसार विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इसीलिए संस्कार के तौर पर अनेक विधि-विधान किए जाते हैं। अग्रि के चारों तरफ फेरे, सप्तपदी, आदि रस्में निभाई जाती है क्योंकि वेदों के अनुसार ये जन्म-जन्मातर का अटूट संबंध है।
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