सोमवार, 11 जुलाई 2011

दो ही तरह के लोगों को अच्छी लगती है तन्हाई...

दिल लगता नहीं अकेले में, यह भी आजकल की जीवनशैली की एक बड़ी समस्या है। पुराने दार्शनिक लोग कह गए हैं कि दो ही लोगों को अकेलापन प्रिय लगा है। योगियों में साधु-संतों को और भोगियों में स्त्रियों को।
अकेलेपन में मनुष्य की निकटता, स्पर्श और संग को अलग-अलग रूप से देखा जाता है। अकेलेपन का अर्थ लिया जाता है किसी का साथ न होना और इसीलिए इसे दूर करने के लिए दूसरे को ढूंढा जाता है, किसी और से इसको भरते हैं, खासतौर पर देह से। या तो अपनी देह को आदमी अपने अकेलेपन में किसी और से जोडऩे का प्रयास करता है।
जैसे खेल, मनोरंजन के साधन या और कोई व्यक्ति। इसीलिए शरीर से मिटाया जाने वाला अकेलापन अस्थाई होता है। कुछ समय के लिए खत्म होगा और फिर लौटकर आएगा। अकेलापन मिटाने का दूसरा तरीका होता है भावनात्मक स्पर्श से। आदमी केवल शरीर से शरीर को नहीं छूता, दृष्टि और हृदय से भी दूसरों को स्पर्श किया जा सकता है।
अकेलापन मिटाने की इस क्रिया में मन और हृदय सक्रिय हो जाते हैं। भावनात्मक स्पर्श अपना काम तो करता है लेकिन जरूरी नहीं कि अकेलापन मिट जाए, पूर्ण तृप्ति और संतुष्टि तब भी नहीं मिलती। इसलिए इस मामले में एक बार फिर हमें अपने हृदय और मन की भूमिका को समझना होगा। भावनात्मक रूप से अकेलापन मिटाने में मन केवल विचार और जानकारियां भीतर भरता है और बाहर उगलता है। www.bhaskar.com

मन से हटकर जब हृदय से जुड़ जाएं तो अकेलेपन में हृदय कुछ अधिक पवित्र होता है, ठीक बदलाव लाता है। मन को विचारों से खाली कर दीजिए। खाली मन अपने आप खिसककर हृदय के पास चला जाता है और हृदय से फिर पूरे शरीर में भावनाओं का संचार होता है और ऐसा संचार अकेलेपन को आनंद में बदल देता है। यह क्रिया है तो गहरी पर करने पर परिणाम बड़े शुभ देती है।

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