सोमवार, 11 जुलाई 2011

bhaagavat 309 देवकी की आंखों से यह दृश्य देखकर आंसु बहने लगे....

समय वहां सर्व देवमयी देवकीजी भी बैठी हुई थीं। वे बहुत पहले से ही यह सुनकर अत्यंत विस्मित थीं कि श्रीकृष्ण और बलरामजी ने अपने मरे हुए गुरुपुत्र को यमलोक से वापस ला दिया। अब उन्हें अपने उन पुत्रों की याद आ गई जिन्हें कंस ने मार डाला था। उनके स्मरण से देवकीजी का हृदय आतुर हो गया, नेत्रों से आंसू बहने लगे। उन्होंने श्रीकृष्ण और बलरामजी को सम्बोधित करते हुए कहा-भूमि के भारभूत उन राजाओं का नाश करने के लिए ही तुम दोनों मेरे गर्भ से अवतीर्ण हुए हो।
मैंने सुना है कि तुम्हारे गुरु सान्दीपनिजी के पुत्र को मरे बहुत दिन हो गए थे। उनको गुरुदक्षिणा देने के लिए उनकी आज्ञा तथा काल की प्रेरणा से तुम दोनों ने उनके पुत्र को युमपुरी से वापस ला दिया था। तुम दोनों योगीश्वरों के भी ईश्वर हो। इसलिए आज मेरी भी अभिलाषा पूर्ण करो। मैं चाहती हूं कि तुम दोनों मेरे उन पुत्रों को, जिन्हें कंस ने मार डाला था, लो दो और उन्हें मैं भर आंख देख लूं।
माता देवकी की यह बात सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी दोनों ने योगश किया। जब दैत्यराज बलि ने देखा कि भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी सुतल लोक में पधारे हैं। उन्होंने भगवान् के चरणों में प्रणाम किया।भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा-दैत्यराज! स्वायम्भुव मन्वन्तर में प्रजापति मरीचिका की पत्नी ऊर्णा के गर्भ से छ: पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे सभी देवता थे। वे यह देखकर कि ब्रम्हाजी अपनी पुत्री से समागम करने के लिए उद्यत हैं, हंसने लगे। इस परिहास रूप अपराध के कारण उन्हें ब्रम्हाजी ने शाप दे दिया और वे असुर योनि में हिरण्यकशिपु के पुत्र रूप से उत्पन्न हुए।
अब योगमाया ने उन्हें वहां से लाकर देवकी के गर्भ में रख दिया और उनके उत्पन्न होते ही कंस ने मार डाला। दैत्यराज! माता देवकीजी उन पुत्रों के लिए अत्यंत शोकातुर हो रही हैं और वे तुम्हारे पास हैं। अत: हम अपनी माता का शोक दूर करने के लिए इन्हें यहां से ले जाएंगे। इसके बाद ये शाप से मुक्त हो जाएंगे और आनन्दपूर्वक अपने लोक में चले जाएंगे। इनके छ: नाम हैं-स्मर, उद्गीथ, परिश्वंग, पतंग, क्षुद्रभृत और घृणि। इन्हें मेरी कृपा से पुन: सद्गति प्राप्त होगी। इतना कहकर भगवान् श्रीकृष्ण चुप हो गए।
दैत्यराज बलि ने उनकी पूजा की, इसके बाद श्रीकृष्ण और बलरामजी बालकों को लेकर फिर द्वारिका लौट आए तथा माता देवकी को उनके पुत्र सौंप दिए।इसके बाद उन लोगों ने भगवान् श्रीकृष्ण, माता देवकी, पिता वसुदेव और बलरामजी को नमस्कार किया। तदन्तर सबके सामने ही वे देवलोक में चले गए। देवकी यह देखकर अत्यंत विस्मित हो गईं कि मरे हुए बालक लौट आए और फिर चले भी गए। उन्होंने ऐसा निश्चय किया कि यह श्रीकृष्ण की ही कोई लीला-कौशल है।
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