बुधवार, 6 जुलाई 2011

...और तब पृथ्वी पर अंधेरा छा गया

भगवान विष्णु की यह बात सुनकर देवगण ब्रम्ह्माजी अगस्त्य मुनि के आश्रम आए। वहां उन्होंने देखा कि अगस्त्यजी ऋषियों से घिरे हुए बैठे हैं। देवता उनके निकट गए। सभी देवता अगस्त्य मुनि की स्तुति गाने लगे। स्तुति में उन्होंने कहा पूर्वकाल में इन्द्र पद पाकर राजा नहुष ने जब सभी लोकों को तृप्त करना शुरू किया।
पर्वतराज विन्ध्याचल सूर्य पर क्रोधित होकर एक साथ बहुत ऊंचे हो गए थे। इससे संसार में अंधेरा रहने लगा। उस समय प्रजा मरने लगी। उस समय आपकी शरण लेने से ही उन्हें शान्ति मिली थी। अब आप ही हमारा सहारा हैं। इतनी कथा सुनने के बाद युधिष्ठिर ने लोमेश से कहा विन्ध्याचल क्रोधित होकर अचानक सूर्य की तरफ क्यों बढऩे लगा?
तब लोमेश मुनि बोले सूर्य उदय और अस्त होने में पर्वतराज सुवर्णगिरी सुमेरु की प्रदक्षिणा किया करते थे। यह देखकर विंध्याचल ने कहा सूर्यदेव जिस प्रकार तुम सुमेरु के पास जाकर उसकी परिक्रमा करते हो, उसी तरह मेरी भी किया करो। इस पर सूर्य ने कहा मैं अपनी इच्छा से सुमेरु की प्रदक्षिणा नहीं करता।
इसलिए करता हूं क्योंकि उन्होंने जगत की रचना की है। उन्होंने मेरे लिए यह मार्ग निर्दिष्ट कर दिया है। सूर्य के ऐसी बात सुनकर विध्यांचल को गुस्सा आ गया। वह सूर्य की तरफ तेजी से बढऩे लगा। तब सभी देवता विन्ध्य के पास आए और अनेकों उपायों से उसे रोकने लगे। उसने किसी कि एक ना सुनी। फिर वे सभी अपनी प्रार्थना लेकर अगस्त्य मुनि के पास गए। वे कहने लगे- भगवन पर्वतराज विन्ध्य ने सूर्य और चंद्र के मार्ग व नक्षत्रों की गति को रोक दिया है।

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