शनिवार, 16 जुलाई 2011

इसलिए परशुराम ने अपनी मां का ही सिर काट दिया

उसके बाद जमदग्रि ने वेदाध्यन आरंभ किया और नियम से स्वाध्याय करने लगे। फिर उन्होंने राजा प्रसेनजित के पास जाकर उनकी पुत्री रेणुका के लिए याचना की और राजा ने जमदग्रि से अपनी बेटी का विवाह कर दिया। रेणुका का आचरण सब प्रकार से अपने पति के अनुकूल था। उनके साथ आश्रम में रहकर वह भी तपस्या करने लगी। उनके चार पुत्र हुए। इसके बाद परशुराम पैदा हुआ जो इनका पांचवा पुत्र था। एक बाद जब सब पुत्र फल लेने चले गए। जब रेणुका स्नान करने को गई। तब उन्होंने देखा कि राजा चित्ररथ जलक्रीड़ा कर रहे हैं। राजा को जलक्रीड़ा करते देख। रेणुका उन पर मोहित हो गई। उसके बाद वे आश्रम लौटी। वहां उन्हें मानसिक रूप से थका हुआ देखकर मुनि ने अपनी दिव्य शक्तियों से जान लिया। इसके बाद उन्होंने तुरंत अपने पुत्रों से कहा तुम अपनी मां को तुरंत मार डालो। वे सभी हक्के-बक्के हो गए और कुछ नहीं बोल सके । तब मुनि ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया।
जिससे उनकी विचारशक्ति नष्ट हो गई। उन सबके पीछे परशुरामजी आए। उनसे मुनि जमदग्रि ने कहा बेटा अपनी इस पापिनी मां को मार डालो। इसके लिए मन किसी तरह का खेद मत कर। सुनकर परशुरामजी ने अपनी माता का मस्तक काट डाला। उसके बाद जमदिग्र का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर अपने बेटे से कहा तुम्हारी जो जो कामना है सब मांग लो। तब उन्होंने कहा पिताजी मेरी माता जीवित हो जाएं। उन्हें मेरे द्वारा मारे जाने के बात याद ना रहे। मेरे चारों भाई स्वस्थ्य हो जाएं, युद्ध में मेरा सामना करने वाला कोइ ना हो, मैं लंबी आयु प्राप्त करूं।

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