शनिवार, 16 जुलाई 2011

इन अनचाही घटनाओं से इस तरह बचें...

जीवन घटनाओं का जोड़ होता है। जिन घटनाओं का संबंध हमसे है उनका प्रवेश हमारे भीतर हो यह स्वाभाविक है, लेकिन दिक्कत तब होती है जब कुछ ऐसी घटनाएं भी हमारे भीतर प्रवेश ले लेती हैं जिनका हमसे कोई लेना-देना नहीं है।
हम कहीं से गुजर रहे हों, विवाह समारोह का संगीत बज रहा हो या जाती हुई कोई शवयात्रा की धुन सुनाई दे जाए और भले ही इनसे हमारा संबंध न हो लेकिन हमारा मन इन्हें तत्काल आमंत्रित कर लेता है, लपक लेता है और असंबंधित घटनाएं भी भीतर उतरकर झंझटें शुरू कर देती हैं। इसकी दूसरी ओर जिन घटनाओं से हम जुडऩा चाहिए उन्हें लेकर हमारा मन अपने दरवाजे बंद कर लेता है।
इससे हमारे जीवन की गंभीरता चली जाती है, एक उथलापन आ जाता है, जिनसे जुडऩा है उनसे कट जाते हैं और उन सब बातों से संबंध रख लेते हैं जो अकारण हैं, बल्कि कई मामलों में अप्रिय भी। इसलिए अपने मन को लेकर एक निजी समझ, व्यक्तिगत विचार और संयमित शैली की जरूरत होती है।
मन और हृदय दो अलग-अलग बातें हैं। काम दोनों एक साथ करते हैं। मन शब्द और विचार के माध्यम से गतिशील होता है, कार्रवाई करता है, मुखरित रहता है और हृदय जुड़ा हुआ है भावनाओं और संवेदनाओं के रूप में। इसलिए हृदय के पास शब्द नहीं हैं और मन के पास शब्दों का भंडार रहता है।
अवांछित घटनाओं को भीतर आने से रोकने के लिए और सही घटनाओं से जुडऩे के लिए मन और हृदय के बीच एक ब्रिज बनाना चाहिए। इसी पुल का नाम ध्यान है। मेडिटेशन जितना अधिक होगा, जुड़ाव और कटाव उतना परिपक्व रहेगा। हमारे शरीर के यह दोनों केन्द्र अद्भुत रूप से काम करेंगे। ध्यान का एक तरीका यह भी है कि जरा मुस्कराइए...
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