सोमवार, 9 अप्रैल 2012

दुर्योधन श्रीकृष्ण को कैद कर लेना चाहता था?

सभी उनके स्वागत की तैयारियां पूरी करने में लग गए। दुर्योधन से सभी तैयारियां पूर्ण होने की सुचना मिलने पर धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा श्रीकृष्ण कल सुबह हस्तिनापुर आ जाएंगे। तुम जानते हो की कृष्ण के दर्शन सैकड़ों सूर्य के दर्शन के समान है।इसलिए जितनी भी प्रजा है उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन करने चाहिए। विदुर ने कहा मैं श्रीकृष्ण की महिमा जानता हूं, उन्हे पांडवों से बहुत अनुराग है।
आप किसी भी तरह कृष्ण को अपनी ओर नहीं कर पाएंगे। दुर्योधन बोला- पिताजी विदुरजी ने जो कुछ कहा है ठीक ही कहा है। श्रीकृष्ण का पांडवों की प्रति बहुत प्रेम है। उन्हें उनके विपक्ष मे कोई नहीं ला सकता। इसलिए आपके सारे प्रयास व्यर्थ हैं। भीष्म बोले श्रीकृष्ण ने अपने मन में जो भी निर्णय ले लिया है। उसे आप और मैं कभी नहीं बदल सकते हैं। दुर्योधन ने कहा- पितामह जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं तब तक मैं इस राजलक्ष्मी को पांडवों के साथ बांटकर नही भोग सकता।
मैंने विचार किया है कि मैं पाण्डवों के पक्षपाती कृष्ण को कैद कर लूं। उन्हें कैद करने से समस्त यादव और सारी पृथ्वी के साथ ही पांडव भी मेरे अधीन हो जाएंगे। यह बात सुनकर धृतराष्ट्र और उनके मंत्रियों को भयंकर झटका लगा। उन्होंने दुर्योधन से कहा-बेटा तू अपने मुंह से ऐसी बातें ना निकाल। यह सनातन धर्म के विरूद्ध है। कृष्णजी यहां दूत बनकर आ रहे हैं और दूत को कैद नहीं किया जाता है।

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