सोमवार, 9 अप्रैल 2012

द्रोपदी के आंसुओं को देखकर श्रीकृष्ण ने क्या प्रतिज्ञा की?

द्रोपदी ने सहदेव और सात्य की प्रशंसा कर रोते हुए कहा- धर्मज्ञ मधुसूदन! दुर्योधन ने जिस क्रुरता से पांडवों को राजसुख से वंचित किया है वह तो आपको मालूम ही है। संजय को राजा धृतराष्ट्र ने एकांत में आपको जो अपना विचार सुनाया है वो भी आप अच्छी तरह जानते हैं। पांडव लोग दुर्योधन का रण में ही अच्छे से मुकाबला कर सकते हैं
इसके बाद द्रोपदी अपने बालों को बाएं हाथ में लिए कृष्ण के पास आई। नेत्रों में जल भरकर उनसे कहने लगी- कमलनयन श्रीकृष्ण! शत्रुओं से संधि करने की तो इच्छा है, लेकिन अपने इस सारे प्रयत्न में आप दु:शासन के हाथों से खींचे हुए इन बालों को याद रखें। अगर भीम और अर्जुन और कायर होकर आज की संधि के लिए ही उत्सुक हैं तो अपने महारथी सहित मेरे वृद्ध पिता और पुत्र कौरवों से संग्राम करेंगे। मैंने दु:शासन को अगर मरते न देखा तो मेरी छाती ठंडी कैसे होगी। इतना कहते हुए द्रोपदी का गला भर आया। तब श्रीकृष्ण ने कहा तुम शीघ्र ही कौरव की स्त्रियों को रुदन करते देखोगी। आज जिन पर तुम्हारा क्रोध है। उनकी स्त्रियां भी इसी तरह रोएंगी।
महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा से भीम, अर्जुन और नकुल-सहदेव के सहित मैं भी ऐसा ही काम करुंगा। यदि काल के वश में पड़े धृतराष्ट्रपुत्र मेरी बात नहीं सुनेंगे तो निश्चय ही मानों की चाहे प्रलय आ जाए लेकिन मेरी कोई बात झूठी नहीं हो सकती। तुम अपने आसुंओं को रोको, मैं सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूं अगर धृतराष्ट्र ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम शीघ्र ही शत्रुओं के मारे जाने से अपने पतियों को श्री सम्पन्न देखोगी। अर्जुन ने कहा- श्रीकृष्ण इस समय सभी कुरूवंशियों के आप ही सबसे बड़े सहृदय हैं। आप दोनों ही पक्षों के संबंधी और प्रिय हैं। इसलिए पांडवों के साथ कौरवों की संधि आप ही करा सकते हैं।

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