सोमवार, 24 मई 2010

आर्किटेक्ट का प्रतिभाशाली बेटा


शाम को घर में घुसते ही गोखले साहब ने गुस्से में भरकर पूछा। गुस्से में आने के बाद वे चिल्लाते नहीं थे। शांतनु को जब वे बंडू कहते तो सबको समझ में आ जाता कि वे नाराज हैं।
आजकल उनकी नाराजी का कारण रहता कि यह लड़का पूरे समय रसोईघर में क्यों घुसा रहता है। उसकी उम्र के बच्चों को या तो खेल के मैदान पर होना चाहिए, या फिर पढ़ाई करते हुए या कम्प्यूटर के सामने नजर आना चाहिए।

बेटा आईआईटी जाए, आईटी प्रोफेशनल बने और खेलकूद कर तंदुरुस्त रहे। सभी पिताओं की तरह गोखले साहब भी यही चाहते थे। वे खुद आर्किटेक्ट थे और कॉलेज की टीम में खो-खो के कप्तान भी रहे।
शांतनु की माँ ने उन्हें पानी का फुलपात्र देते हुए उनको शांत करने का प्रयत्न किया- बंडू खाना बनाने में मेरी मदद कर रहा है। यही बात गोखलेजी को सख्त नापसंद थी कि लड़का-लड़कियों के काम करे। फिर वे अपनी नाराजी उर्मिला पर उतारते कि घर में कोई लड़की नहीं है इसका अर्थ यह नहीं कि तुम इकलौते लड़के को भी गृहकार्य में दक्ष बनाओ।
बंडू के पिता अधिक गुस्सा होते तो पत्नी को उसके नाम से पुकारते। उनका हमेशा यही तर्क रहता कि रसोई बनाना पुरुषों का काम नहीं। सिर्फ अनपढ़ पुरुष ही बावर्चीगिरी करते हैं और वह भी पुराने जमाने में हुआ करता था। खाना केवल महिलाओं का काम है और उनकी अपनी माँ सर्वश्रेष्ठ खाना पकाने वाली थी।
यों उर्मिला काकू के हाथ में भी स्वाद था। उनकी शिकायत रहती कि गोखलेजी को खाने में कोई रुचि ही नहीं। लेकिन वे नाराज होने बाद भी पति को प्रभाकर नाम से नहीं पुकारती थी। वह सिर्फ इतना जता देती थी कि उनकी सास गणित की प्रोफेसर थीं और ससुरजी के खाने के शौक के कारण अच्छा खाना बनाने लगी थी। बहरहाल, गोखले साहब पत्नी के साथ बहस में पड़ना नहीं चाहते थे क्योंकि उर्मिला काकू अपने कॉलेज के दिनों की सर्वश्रेष्ठ वक्ता मानी जाती थी।
आए दिन घर में होने वाले इन विवादों का इतिहास दो वर्ष पुराना था। शांतनु को खाने का शौक था- चटोरेपन की हद तक। स्कूल से आने के बाद, पढ़ाई के बाद, खेलकर आने बाद, भोजन से पहले उसे कुछ न कुछ पेट में डालने के लिए चाहिए होता। उर्मिला काकू उसके लिए शकर पारे, चकली वगैरह बनाकर रखती। बंडू के आगे भरे डिब्बे चार दिन में खाली हो जाते। जब माँ देर तक कॉलेज से न लौटती, बंडू के पेट में चूहे उछलने लगते। एक दिन बंडू ने खुद ही सैंडविच बनाकर खाए। दूसरे दिन उसने पत्ता गोभी और शिमला मिर्च का सैंडविच बनाया। यह सिलसिला चल निकला। एक के बाद एक, बंडू सलाद, सब्जियाँ, आमटी जैसे पदार्थ बनाने लगा। उर्मिला काकू को भी ताज्जुब था कि दिवाली के दिनों में जो अनारसे उनसे नहीं बनते थे, बंडू बहुत अच्छे से बना लेता था।
गोखलेजी इसी बात से दुःखी हो उठते। वे कहते मत गाड़ो खेल के मैदान पर झंडे, मत बनो वैज्ञानिक। परंतु भगवान के लिए बावर्ची मत बनो।
कुछ दिनों से शाम को खाने की टेबल पर अक्सर थॉमसन साहब की चर्चा होती। वे गोखलेजी के नए क्लाइंट थे। शहर के इलेक्ट्रॉनिक पार्क में थॉमसन कम्युनिकेशंस के कारण बड़ी सनसनी फैली थी। ये अमेरिका की बड़ी कंपनी थी। अपना दफ्तर बनाने के लिए उन्होंने गोखले एंड कंपनी को अनुबंधित किया था। हमउम्र, पढ़ाकू और संगीत के शौकीन होने के कारण थामसन और गोखले अच्छे मित्र बन गए थे।
थॉमसन साहब चाहते थे कि उनके कार्यालय का सारा कामकाज सोलर और विंड एनर्जी से चले। हरा-भरा अहाता हो और फल-सब्जियों की खेती हो। उन्हें सब्जियाँ खूब भाती थीं।
एक शनिवार की दोपहर गोखले साहब का फोन आया कि शाम को थॉमसन साहब डिनर के लिए घर आ रहे हैं। उन्हें पता था कि उनका घरेलू नौकर राम्या कल शाम ही अपने गाँव गया है, क्योंकि उसके घर की गाय ने एक काली केड़ी को जन्म दिया है जिसके माथे पर सफेद तिलक है। यह बहुत शुभ लक्षण है।
गोखलेजी ने उर्मिला काकू को जताया कि वह फिक्र न करे। वे लौटते समय होटल से कुछ मंचूरियन कुछ बेक्ड वेजीटेबल पैक करवाकर ले आएँगे। और यही सब करने में उन्हें घर लौटने में देर हो गई।
थॉमसन साहब को आए काफी देर हो गई थी। उर्मिलाजी को दिया उनका गुलदस्ता गुलदान में सज चुका था। बैठक में बंडू उनसे गपिया रहा था। गोखलेजी का विश्वास था कि बंडू गपियाने से बेहतर तरीके से कोई बात नहीं कर सकता। परंतु थॉमसन साहब खूब कहकहे भी लगा रहे थे। गोखले साहब के आते ही वे बोले कि गोखले, टुमारा सन इज ए वंडरफुल फेलो। गोखलेजी ने देखा कि उर्मिला उनकी ओर निगाहें गड़ाकर देख रही थी।
खाने की मेज पर तो गजब ही हुआ। गोखलेजी की लाई पनीर, मंचूरियन को तो थॉमसन ने चखकर छोड़ दिया। वे तो मूली की आमटी और कोशिंबीर पर टूट पड़े और उन्हें खत्म करके ही माने।
उनकी राय में उन्होंने दुनियाभर में चखे सूप और सलाद में ये सर्वश्रेष्ठ थे। फिर उर्मिलाजी को बधाई देते हुए उन्होंने उन दोनों पदार्थों को बनाने के नुस्खे माँगे। तब बात जाहिर हुई कि ये दोनों चीजें बंडू की बनाई हुई थी। इन्हें बनाने में जिस हल्के हाथ का स्पर्श जरूरी है वह किसी पहुँचे हुए शेफ की ही विशेषता हो सकती है ऐसा थॉमसन साहब ने कह डाला।
अचानक गोखलेजी बोलने लगे, ...दरअसल मैं शुरू से ही जोर देता आया हूँ कि बच्चे अपने अंदर के गुणों का विकास करें। महिलाएँ कंपनियाँ संभाल सकती हैं तो पुरुष किचन क्यों नहीं? अब उर्मिला काकू और बंडू ने गोखलेजी को घूरा लेकिन वे तो उनसे नजरें मिलाने को भी तैयार नहीं थे।

चूहों की चतुराई
नंदनवन में रहा करते थे हजारों चूहे। मोटे-मोटे मस्त। मोटे और मस्त इसलिए थे क्योंकि वे बाकी जानवरों के साथ मिलजुल कर रहते थे। वे चूहे बहुत ही अच्छे थे और तभी तो सभी उन्हें प्यार करते थे।
कुछ बिल्लियाँ भी वहाँ थीं जो उनकी जान के पीछे पड़ी रहती थीं। पर चूहे उनको हमेशा चकमा देकर तारा..तारा..तरा..करके अपनी जान बचा लेते थे।

उनमें भी टूटू चूहा भी था। उसकी मकू खरगोश से बड़ी गहरी दोस्ती थी। मकू के साथ मिलकर टूटू हमेशा चूहों को बचा लेता था।
बस इसी कारण से बिल्लियाँ मुँह लटकाए बैठी हुई थीं। तभी शहर से मीठी बिल्ली लौटकर आई। सभी बिल्लियों ने उसको अपनी परेशानी बताई।
असल में मीठी अपने आप को बहुत स्मार्ट समझती थी। वह बोली -'परेशान होने की जरूरत नहीं। मैंने शहर में बड़ी-बड़ी करामातें की हैं। इन चूहों को पकड़ना तो बड़ा आसान है। बस तुम मुझ पर भरोसा करो।' मीठी ने बिलौटी का हौसला बढ़ाया।
'चिंता की कोई बात नहीं। मैं शहर से एक किताब लाई हूँ, 'चूहे पकड़ने के हजार उपाय', बस हमें उसमें से एक अच्छा-सा आइडिया चुनना है।' मीठी ने कहा।
अगले ही दिन वह किताब उठा कर जैसे ही वह वहाँ पहुँची, बाकी बिल्लियाँ उसे घेर कर खड़ी हो गईं।
'मीठी, जल्दी से उपाय बताओ,' बिलौटी ने उतावली होकर कहा।

'सुनो, हम राजा गब्बरसिंह के पास जाकर विनती करेंगे कि वह हमें पुलिस में भर्ती कर लें। फिर तो हमारा काम आसान हो जाएगा। चूहे को कानून तोड़ने के जुर्म में पकड़-पकड़कर अंदर करेंगे और फिर...दावत!' मीठी ने आँखें मटकाकर कहा।
मीठी की बात सुनकर बिल्लियाँ बेहद खुश हो गईं और उसे कंधे पर बैठा कर नाचने लगीं।
गब्बरसिंह मीठी की योजना को भाँप नहीं सके थे इसलिए उन्होंने सबको पुलिस में भर्ती कर लिया। मीठी तेजतर्रार थी, इसलिए उसे थानेदार बना दिया।
थाने में मीठी शान से पैर पर पैर रखकर बैठ गई। फिर उसने बिलौटी को बुलाकर योजना बनाई। उसने कहा, 'बिलौटी, तुम कहीं छिप जाओ। मैं ऐसी खबर फैलाऊँगी कि चूहों ने तुम्हें मार डाला। मैं उनको गिरफ्तार करके थाने में बंद कर दूँगी। फिर रात में वे हमारी दावत का सामान बनेंगे।'
योजना जोरदार थी। बिलौटी जल्दी से मान गई और अपने घर में जाकर छिप गई।
इधर मीठी ने खबर फैला दी कि चूहों ने बिलौटी का कत्ल कर दिया है और वह उन्हें पकड़ने के लिए निकल पड़ी।
सारे चूहे डर गए सोचने लगे अब पता नहीं क्या होगा? जो चूहे मीठी के हाथ आ गए उन्हें वह पकड़कर ले गई। जो छिप गए थे वे बच गए।
उसके जाने के बाद टूटू चूहा घर से बाहर निकला और सभी को लेकर सुरक्षित जगह की ओर जाने लगा।
चूहों को इस भागता देखकर भालू ने पूछा, 'क्यों टूटू, क्या हुआ? तुम लोग ऐसे भागे कहाँ जा रहे हो।'
'अरे क्या बताएँ, हम पर मुसीबत टूट पड़ी है। एक बिल्ली मर गई है और पुलिस का कहना है कि हमने उसे मारा है, इसलिए हम सब छिपने जा रहे हैं,' कह कर टूटू और बाकी चूहे फिर भागने लगे।
उसकी बात सुनकर भालूको तो चक्कर ही आ गया। वह बड़बड़ाया, 'कितनी अजीब बात है। चूहों ने बिल्ली को मार दिया?''
जब यह बात मकू को पता चली तो वह टूटू को ढूँढने निकल पड़ा। मिलने पर टूटू ने उसे सारी बातें बताई।
मकू उसे सांत्वना देते हुए बोला, 'टूटू, तुम परेशान न हो, मैं ऐसी चाल चलूँगा कि बिल्लियों की छुट्टी हो जाएगी।'
इसके बाद मकू ने एक दिन थाने से बिलौटी को निकलते देखा। उसने सोचा, 'अरे, यह तो मर गई थी। यह फिर से जिंदा कैसे हो गई। लगता है, दुष्ट मीठी ने चूहों की दावत उड़ाने के लिए यह षड़यंत्र रचा है। अब मैं इन सबको ऐसा मजा चखाऊँगा कि ये जीवन भर याद रखेंगी।'
वापस लौट कर मकू खरगोश ने एक नकली वसीयत तैयार करवाकर यह खबर फैला दी कि दूर के जंगल में रहने वाली बिलौटी की दादी बहुत सारी धन संपत्ति छोड़कर मर गई है। चूँकि बिलौटी जिंदा नहीं है, इसलिए वसीयत के अनुसार सारी संपत्ति टूटू चूहे को मिल जाएगी।
अपनी दादी के मरने की खबर सुनकर बिलौटी को बुरा लगा लेकिन वह बुरी तरह ललचा भी गई। आव देखा न ताव वह घर से बाहर निकल आई।
'किसने कहा कि मैं मरी हूँ, मैं तो जिंदा हूँ और सारी दौलत भी मेरी है।'' वह चिल्लाने लगी।
बाहर तो सारे जानवर यह सुन रहे थे। उन्होंने बिलौटी को पकड़ा और राजा गब्बर सिंह के पास ले गए।
सारी बातों का पता चलने पर मीठी बिल्ली को भी पकड़ा गया। डर के मारे उसने सच उगल दिया। 'मुझे माफ कर दो। मैंने मुफ्त में चूहों की दावत उड़ाने के लिए यह साजिश रची थी। मुझे छोड़ दो और शहर जाने दो,' मीठी बिल्ली रोते हुए बोली।
पर गब्बर सिंह ने उन्हें माफ नहीं किया और जेल भेज दिया। बाकी की सभी बिल्लियाँ भी दुम दबाकर भाग गईं।
मकू खरगोश और टूटू चूहे की दोस्ती और गहरी हो गई।

ई-मेल एड्रेस
एक बेरोजगार युवक ने किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में ऑफिस में काम करने वाले लड़के की जगह के लिए एप्लीकेशन भेजी। लड़के को बुलाया गया। मैनेजर ने उसका इंटरव्यू लिया। इसके बाद उससे फर्श की सफाई करवाकर देखी और संतुष्ट होने के बाद कहा कि अपना ई-मेल एड्रेस दे जाओ, हम तुम्हें नौकरी के लिए बुलवा लेंगे।

लड़के ने जवाब दिया- पर मेरे पास कम्प्यूटर नहीं है और इसलिए मेरा कोई ई-मेल अकाउंट भी नहीं है। मैनेजर ने कहा कि जब तुम्हारा कोई ई-मेल एड्रेस ही नहीं है तो यह नौकरी तुम्हें नहीं मिल सकती है। यह सुनकर वह लड़का उस ऑफिस से लौट आया। ऑफिस से बाहर निकलने के बाद उस लड़के ने अपनी जेब में पड़े 50 के नोट से एक टोकरी सेब खरीदे और उन्हें बेचने लगा। कुछ ही देर में उसके पैसे डबल हो गए। लड़के को काम जम गया और इस तरह उसने 50 से 100, 100 से 200, 200 से 300 रु. करके धीरे-धीरे बड़ा कारोबार कर लिया। उसने कई ट्रक खरीद लिए और उनके जरिए सप्लाय करने लगा। अब वह लड़का अपने क्षेत्र का एक करोड़पति व्यापारी हो गया था। एक दिन उसने सोचा क्यों न अपना इंश्योरेंस करवा लिया जाए।
मैनेजर ने उसका इंटरव्यू लिया। इसके बाद उससे फर्श की सफाई करवाकर देखी और संतुष्ट होने के बाद कहा कि अपना ई-मेल एड्रेस दे जाओ, हम तुम्हें नौकरी के लिए बुलवा लेंगे।
यह सोचकर उसने इंश्योरेंस एजेंट को बुलाया और उसे अपनी इच्छा बताई। एजेंट ने पूछा आप मुझे अपना ई-मेल एड्रेस दे दीजिए। मैं सारी जानकारी आपको भेज दूँगा। व्यापारी युवक ने कहा कि मेरा कोई ई-मेल एड्रेस नहीं है। इस पर एजेंट ने कहा कि बिना ई-मेल एड्रेस के आपने अपना कारोबार इतना फैला लिया।
अगर आप कोई-मेल एड्रेस होता तो आप जानते हैं कि आप कहाँ होते। व्यापारी युवक ने जवाब दिया- मुझे पता है कि अगर मेरा ई-मेल एड्रेस होता तो मैं कहाँ होता। तो बच्चों, अगर आपके पास कोई चीज नहीं है तो उसका अफसोस मत करो। आप यह देखो कि आपके पास वह चीज क्या है, जो दूसरों के पास नहीं है।

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