रविवार, 11 जुलाई 2010

कंप्यूटर का आविष्कार

किसने बनाया कंप्यूटर?
थोमस एडिसन ने बिजली के बल्ब का आविष्कार किया, विलबर और ऑरविल राइट ने पहली बार हवाई जहाज से उड़ने का प्रयोग किया, लेकिन कंप्यूटर कहाँ से आया? किसने पहला कंप्यूटर बनाया?

वैसे तो ऐबेकस के रूप में सदियों से कैलकुलेटर जैसा एक औजार था, लेकिन डाटा स्टोरिंग की मशीन किसने बनाई? पेटेंट दफ्तर में इस सिलसिले में चार्ल्स बैबेज का नाम दर्ज है। वे इंगलैंड के थे और उन्नीसवीं सदी में ही उन्होंने इसके शुरुआती सिद्धांत बनाए थे। लेकिन जर्मनी के कॉनराड त्सूजे ने पहली बार 1941 में एक मशीन तैयार की, जिसे आज के कंप्यूटर का जनक कहा जा सकता है। इसमें बस 64 शब्द स्टोर किए जा सकते थे। त्सूजे इतना ही चाहते थे कि उन्हें किसी तरह हिसाब के झमेले से निजात मिल जाए।

1992 में इस सिलसिले में उन्होंने कहा था, 'मैंने सिविल इंजिनीयरिंग की पढ़ाई की थी। सिविल इंजिनीयर को हिसाब लगाने होते हैं, जिनमें काफी माथापच्ची करनी पड़ती है। मैं चाहता था कि ये हिसाब ऑटोमेटिक ढंग से हों, फिर मुझे एक तरीका सूझा और यह मशीन बनी, जिसे हम आज कंप्यूटर कहते हैं। आप कह सकते हैं कि मेरे पेशे की मजबूरी से इसका जन्म हुआ।

1938 में त्सूजे ने जेड 1 नाम की जो मशीन तैयार की, उसमें चारों ओर छड़ों और हैंडिलों की भरमार थी। यह प्रयोग के लिए एक मॉडल था और इसमें अभी बहुत सी खामियाँ थीं। इसके बाद उन्होंने जेड 2 नाम का एक और मॉडल तैयार किया, जिसमें एक टेलीफोन रीले सिस्टेम था। फिर 1941 में तैयार हुआ दुनिया का पहला कामकाजी कंप्यूटर जेड 3 यह देखने में एक विशाल अलमारी जैसा था और इसमें 600 टेलीफोन रीले सिस्टेम शामिल थे। आज इस मशीन को म्युनिख के जर्मन संग्रहालय में रखा गया है। हाइंत्ज मोएलर यहाँ दर्शकों को जेड 3 की बारीकियों का परिचय देते हैं और उनके सवालों का जवाब देते हैं।

वे कहते हैं- लोग इस मशीन के सामने खड़े रहते हैं और हैरत से इसे देखते रहते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि यह क्या है। काफी दिलचस्प सवाल भी पूछे जाते हैं। अभी पिछले हफ्ते एक कंप्यूटर प्रेमी ने मुझसे पूछा कि क्या इसे इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है? मैंने उनसे कहा, क्यों नहीं, अगर आपके पास बूट करने के लिए 28 हजार साल का वक्त हो।

कॉनराड त्सूजे ने सिर्फ वही नहीं तैयार किया, जिसे आज की भाषा में हार्डवेयर कहते हैं। उन्हें एक प्रोग्राम, यानी सॉफ्टवेयर भी तैयार करना पड़ा, ताकि कंप्यूटर काम कर सके। उनकी भाषा में हिसाब की प्रणाली। इसमें पंच सिस्टेम के जरिए निर्देश व संख्याएँ दी गई थीं, जिनके आधार पर यह मशीन काम करती थी।

म्युनिख संग्रहालय में जेड 3यह नाजियों का जमाना था, द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। हालाँकि त्सूजे ने नाजी सरकार के निर्देश पर इसे तैयार नहीं किया था, लेकिन युद्ध में इस्तेमाल के लिए उन्होंने अपना आविष्कार मुहैया कराया था। नए विमान तैयार करने के लिए या दूसरे पक्ष की सूचनाओं को डिकोड करने के लिए इसे काम में लाया जा रहा था।

त्सूजे सिर्फ अपने आविष्कार में मगन थे। पीछे मुड़कर देखते हुए बाद में उन्होंने कहा था, 'उस समय मेरे सामने सवाल यह था कि कैसे इस तरह की मशीनों को विकसित करते हुए विश्लेषण का काम आगे बढ़ाया जा सकता है। सेना के लोगों से भी मेरी बाते हुई थीं, लेकिन उनके पास एनिग्मा नाम की मशीन थी, जो उस दौर के हिसाब से कापी अच्छी थी।'

विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी को कंप्यूटर नही, दूसरी चीजों की जरूरत थी। लेकिन कॉनराड त्सूजे अपने रास्ते पर बने रहे।

कॉनराड त्सूजे कहते हैं, 'मेरे लिए यह बात साफ थी कि मैं संगणन की एक नई दुनिया में कदम रख रहा हूँ और मेरी राय में ऐलगोरिदम की भाषा तैयार करने के लिए शतरंज का खेल एक इलाका हो सकता था। मिसाल के तौर पर 1938 में अपने दोस्तों के बीच मजाक करते हुए मैंने कहा था कि पचास साल के अंदर एक मशीन शतरंज के विश्वचैंपियन को हरा देगी। अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ, लेकिन रास्ता बिल्कुल सही था।'

1940 से ही कॉनराड त्सूजे की अपनी कंपनी थी, त्सूजे अप्पाराटेनबाऊ, जो 1964 में दीवालिया हो गई। लेकिन इससे भी ज़्यादा अफसोस उन्हें इस बात का था कि पेटेंट दफ्तर में उनकी दरख्वास्त खारिज कर दी गई। उनका कहना था कि यह फैसला सही नहीं था।

कंपनी दीवालिया हो जाने के बाद वे कलाकार बन गए। लेकिन यहाँ भी कंप्यूटर ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। वे कंप्यूटर की दुनिया के दिग्गजों की ऑयल पेंटिंग बनाने लगे। 1995 में अपनी मौत से कुछ ही माह पहले उन्होंने बिल गेट्स को उनकी एक तस्वीर भेंट की। सीएट्ल में माइक्रोसॉफ्ट के मुख्यालय में बिल गेट्स के दफ्तर में आज भी यह तस्वीर टंगी हुई है।

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