शनि पर तेल चढ़ाने का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। शनि न्यायप्रिय ग्रह है और श्रम से प्रसन्न होते हैं। शनि की नाराजी श्रम से दूर की जा सकती है लेकिन उस श्रम के लिए हमारे शरीर में शक्ति, स्वास्थ्य और सामथ्र्य रहे, इसके लिए शनि को तेल चढ़ा कर प्रसन्न किया जाता है। पुराणों में शनि को तेल चढ़ाने के पीछे कई भिन्न-भिन्न कथाएं हैं। मुख्यत: ये सारी कथाएं रामायण काल और विशेष रूप से भगवान हनुमान से जुड़ी हैं। अलग-अलग कथाओं में शनि को तेल चढ़ाने की चर्चा है लेकिन सार सभी का यही है। शनि नीले रंग का क्रूर माना जाने वाला ग्रह है, जिसका स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उसने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीड़ित शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा तथा शनिवार को मुझपर तेल चढ़ाएगा उसका मैं कल्याण करुंगा।धार्मिक महत्व के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार को तेल लगाने या मालिश करने से सुख प्राप्त होता है। उक्त वाक्य और शनि को तेल चढ़ाने का सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को त्वचा, दांत, कान, हड्डियों और घुटनों में स्थान दिया गया है। उस दिन त्वचा रुखी, दांत, कान कमजोर तथा हड्डियों और घुटनों में विकार उत्पन्न होता है। तेल की मालिश से इन सभी अंगों को आराम मिलता है। अत: शनि को तेल अर्पण का मतलब यही है कि अपने इन उपरोक्त अंगों की तेल मालिश द्वारा रक्षा करो।दांतों पर सरसो का तेल और नमक की मालिश। कानों में सरसो तेल की बूंद डालें। त्वचा, हड्डी, घुटनों पर सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए। शनि का इन सभी अंगों में वास माना गया है, इसलिए तेल चढ़ाने से वे हमारे इन अंगों की रक्षा करते हैं और उनमें शक्ति का संचार भी करते हैं।
सुंदरकांड का ही पाठ क्यों
शिव को क्यों प्रिय है रुद्राक्ष?
अक्सर शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करने का महत्व माना गया है। ज्यादा परेशानी हो, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या कई ज्योतिषी और संत भी लोगों को ऐसी स्थिति में सुंदरकांड का पाठ करने की राय देते हैं। आखिर रामचरितमानस के सारे छह कांड छोड़कर केवल सुंदरकांड का ही पाठ क्यों किया जाता है?
वास्तव में रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामचरितमानस भगवान राम के गुणों और उनकी पुरुषार्थ से भरे हैं। सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो भक्त की विजय का कांड है। मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला कांड है।
हनुमान जो कि जाति से वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए और वहां सीता की खोज की। लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर लौट आए। यह एक आम आदमी की जीत का कांड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है। इसमें जीवन में सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी हैं। इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है।
शानदार पोस्ट
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