रविवार, 11 जुलाई 2010

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज

विश्व के पाँच महान धनुर्धर !
शतायु
धनुर्धर तो बहुत हुए हैं। राम और कृष्ण भी धनुर्धर थे, लेकिन वे भगवान थे। भगवान तो कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन एक ऐसा भी धनुर्धर था, जिसकी विद्या से भगवान कृष्ण भी सतर्क हो गए थे। युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु, एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूँगा जो हार रहा होगा।
भीम के पौत्र बर्बरीक के समक्ष जब अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना मात्र ही दिखाया। कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊँगा। बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।

जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा, कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर छेदने की नहीं।

उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए। भगवान श्रीकृष्ण यह बात जानते थे कि बर्बरीक प्रतिज्ञावश हारने वाले का साथ देगा। यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और यदि जब पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा। इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुँच गए और दान माँगने लगे। बर्बरीक ने कहा माँगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फँस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश माँग लिया।

बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया। दान के पश्चात्‌ श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहाँ कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।

तो यह थी बर्बरीक की कहानी, लेकिन आप तो जानते ही हैं कि अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धरों की श्रेणी में रखा जाता है। उसी तरह लक्ष्मण, कर्ण और एकलव्य को भी श्रेष्ठ धनुर्धरों की श्रेणी में रखा गया है। इस तरह अब हमारे पास क्रमश: पाँच श्रेष्ठ धनुर्धर हैं:- लक्ष्मण, बर्बरीक, कर्ण, अर्जुन, अश्वथामा और एकलव्य।

1.लक्ष्मण:- राम के छोटे भाई लक्ष्मण को कौन नहीं जानता। लक्ष्मण ने अपने तीर से रेखाGet Fabulous Photos of Rekha खींच दी थी। उस रेखा में ही इतनी ताकत थी कि कोई भी उसके उस पार नहीं जा सकता था। लक्ष्मण की धनुष विद्या के चर्चे दूर-दूर तक थे। शास्त्रों अनुसार लक्ष्मण को श्रेष्ठ धनुर्धर माना गया है। लक्ष्मण ने राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद को हराया था जिसने युद्ध में इंद्र को परास्त कर दिया था इसीलिए मेघनाद को इंद्रजीत भी कहा जाता है।

2.कर्ण:- वैसे तो महाभारत काल में सैकड़ों योद्धा हुए हैं, लेकिन कहते हैं कि युद्ध में कर्ण जैसा कोई धनुर्धर नहीं था। कवच और कुंडल नहीं उतरवाते, तो कर्ण को मारना असंभव था। कर्ण के तीर की इतनी ताकत थी कि जब वे तीर चलाते थे और उनका तीर अर्जुन के रथ पर लग जाता था तो रथ पीछे कुछ दूरी तक खिसक जाता था। कृष्ण अर्जुन से कहते थे कि जिस रथ पर मैं और हनुमान विराजमान हैं उसके इस तरह पीछे धकेले जाने से पता चलता है कि कर्ण की धनुर्विद्या में बहुत बल है।
3.अर्जुन:- पाँच पांडवों में से एक अर्जुन की धनुष विद्या भी जग प्रसिद्ध थी। गुरु द्रोण के श्रेष्ठ शिष्यों में से एक थे अर्जुन। द्रोण ने अर्जुन को धनुष सिखाते वक्त वचन दिया था कि तुमसे श्रेष्ठ इस संसार में कोई धनुर्धर नहीं होगा। इस वचन की रक्षा के लिए ही उन्होंने एकलव्य से उसका अँगूठा माँग लिया था।

4.एकलव्य:- गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर मूर्ति के समक्ष एकलव्य ने धनुष विद्या सिखी थी। गुरु द्रोण को जब इस बात का पता चला कि एकलव्य अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुष बाण चलाना सिख गया है तो उन्होंने एकलव्य से पूछा कि तुमने यह विद्या कहाँ से सीखी। इस पर एकलव्य ने कहा- गुरुवर मैंने आपको ही गुरु मानकर आपकी मूर्ति के समक्ष यह विद्या को हासिल किया था।

इस बात पर द्रोण ने कहा कि तब तो हम गुरु दक्षिणा के हकदार हैं। एकलव्य यह सुनकर प्रसन्न हो गया और कहने लगा माँगिए गुरुदेव क्या चाहिए। द्रोण ने कहा कि तुम जिस हाथ से प्रत्यंचा चढ़ाते हो मुझे उस हाथ का अँगूठा चाहिए।

बर्बरीक की कहानी हम ऊपर लिख आए हैं। हालाँकि राम को भी श्रेष्ठ धनुर्धरों में गिना जाता है, राम के काल और महाभारत युद्ध में एक से एक श्रेष्ठ धनुर्धर हुए हैं। अश्वथामा को भी सर्वेश्रेष्ठ धनुर्धरों में शामिल किया जा सकता है। प्रत्येक धनुर्धर को अपनी एक अलग ही विद्या के कारण जाना जाता था इस लिहाज से सभी अपने-अपने फन में माहिर थे।

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