यह बात गुज़रे ज्यादा वक्त नहीं हुआ। शाम का वक्त था और मैं अपनी बाइक से घर जा रहा था। अभी थोड़ा रास्ता ही तय किया था कि मैंने देखा एक बच्च जो तकरीबन चार-पांच साल का रहा होगा, अकेला ही चला जा रहा था। मैंने आसपास नज़र दौड़ाई कि शायद उसके मम्मी-पापा दिखाई पड़ जाएं, लेकिन वहां दूर तक कोई नहीं था। मुझे लगा कि वह बच्च अपना घर भूल गया होगा या घरवालों से बिछड़ गया होगा।
मैंने मन ही मन ठान लिया कि उस बच्चे को उसके घर पहुंचा दूंगा या अगर उसे पता याद नहीं हुआ, तो नज़दीकी पुलिस स्टेशन पहुंचा दूंगा ताकि पुलिस उसे उसके घर तक पहुंचा दे। इस बहाने एक नेक काम भी हो जाएगा और थोड़ी वाहवाही भी मिल जाएगी।
ख्याली पुलाव पकाते हुए मैं धीरे-धीरे उस बच्चे के पीछे चलने लगा। मैं उसके रुकने या रोने का इंतज़ार कर रहा था। उस बच्चे ने भी शायद मुझे और मेरी मंशा को भांप लिया था। कुछ दूर चलने के बाद वह रुका और मेरे पास आकर बोला, ‘अरे अंकल, आप चिंता मत करो और जाओ। मैं वो सामने वाली गली में ही रहता हूं और अकेले चला जाऊंगा।’ इतना कहकर वह दौड़कर गली में दाखिल हो गया और मैं वहीं अवाक् सा खड़ा रह गया। मैं तो नेक काम और वाहवाही के चक्कर में था। बाइक के साइड ग्लास में मुझे अपना चेहरा देखकर ही हंसी आ गई। जब घर जाकर किस्सा सुनाया, तो ऐसा कोई नहीं था, जो मुझ पर हंसा न हो।
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